Book Title: Shatkhandagama Pustak 02
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
View full book text
________________
१, १.] संत-परूवणाणुयोगद्दारे वेद-आलाववण्णणं
[६८१ जोग, इत्थिवेद, चत्तारि कसाय, तिण्णि णाण, संजमासंजमो, तिणि दंसण, दवेण छ लेस्साओ, भावेण तेउ-पम्म-सुक्कलेस्साओ; भवसिद्धिया, तिण्णि सम्मत्तं, सण्णिणो, आहारिणो, सागारुवजुत्ता होंति अणागारुवजुत्ता वा।
___ इत्थिवेद-पमत्तसंजदाणं भण्णमाणे अस्थि एवं गुणहाणं, एओ जीवसमासो, छ पजत्तीओ, दस पाण, चत्तारि सण्णाओ, मणुसगदी, पंचिंदियजादी, तसकाओ, णव जोग, आहारदुगं णत्थि । इत्थिवेदो, चत्तारि कसाय, मणपजवणाणेण विणा तिण्णि णाण, परिहारसंजमेण विणा दो संजम, कारणं आहारदुग-मणपज्जवणाण-परिहारसंजमेहि वेददुगोदयस्स विरोहादो । तिण्णि दंसण, दव्वेण छ लेस्साओ, भावेण तेउ-पम्म-सुक्कलेस्साओ; भवसिद्धिया, तिणि सम्मत्तं, सण्णिणो, आहारिणो, सागारुवजुत्ता होंति
औदारिककाययोग ये नौ योग; स्त्रीवेद, चारों कषाय, आदिके तीन ज्ञान, संयमासंयम, आदिके तीन दर्शन, द्रव्यसे छहों लेश्याएं, भावसे तेज, पद्म और शुक्ल लेश्याएं, भव्यसिद्धिक, औपशमिक, क्षायिक और क्षायोपशमिक ये तीन सम्यक्त्व, संशिक, आहारक, साकारोपयोगी और अनाकारोपयोगी होते हैं।
स्त्रीवेदी प्रमत्तसंयत जीवोंके आलाप कहने पर-एक प्रमत्तसंयत गुणस्थान, एक संज्ञीपर्याप्त जीवसमास, छहों पर्याप्तियां, दशों प्राण, चारों संज्ञाएं, मनुष्यगति, पंचेन्द्रियजाति, त्रसकाय, चारों मनोयोग, चारों वचनयोग और औदारिककाययोग ये नौ योग होते हैं किन्तु आहारककाययोग और आहारकमिश्रकाययोग नहीं होता है। योग आलापके आगे स्त्रीवेद, चारों कषाय, मनःपर्ययज्ञानके विना आदिके तीन शान, परिहारविशुद्धिसंयमके विना आदिके दो संयम होते हैं। यहांपर आहारकद्विक मनःपर्ययज्ञान और परिहारविशुद्धिसंयमके नहीं होनेका कारण यह है कि आहारकद्विक, मनःपर्ययज्ञान और परिहारविशुद्धिसंयमके साथ स्त्रीवेद और नपुंसकवेदके उदय होनेका विरोध है। संयम आलापके आगे आदिके तीन दर्शन, द्रव्यसे छहों लेश्याएं, भावसे तेज, पद्म और शुक्ल लेश्याएं; भव्यसिद्धिक, औपशमिक, क्षायिक और क्षायोपशमिक ये तीन सम्यक्त्व, संक्षिक, आहारक, साकारोपयोगी
नं.३०७
स्त्रीवेदी प्रमत्तसंयत जीवोंके आलाप. का. यो. वे. क. ना. संय. द. ले. भ. स.
गु.
जी.
संज्ञि. | आ.। उ.
प्रम. सं.प.
।।
म. पं.
स. ~
म. ४ स्त्री.
सं. आहा. साका.
मति. सामा के.द. मा. ३ भ. औ. श्रुत. छेदो. विना. शुभ. अव.
क्षायो.
अना.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org