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६२६] छक्खंडागमे जीवट्ठाणं
[१.१, भवसिद्धिया अभवसिद्धिया, मिच्छत्तं, सणिणो असणिणो, आहारिणो अणाहारिणो, सागारुवजुत्ता हाँति अणागारुवजुत्ता वा।
तेसिं चेव अपज्जत्ताणं भण्णमाणे अत्थि एवं गुणहाणं, पंच जविसमासा, छ अपज्जत्तीओ पंच अपज्जत्तीओ, सत्त पाण सत्त पाण छ पाण पंच पाण चत्तारि पाण, चत्तारि सण्णाओ, चत्तारि गदीओ, बेइंदियजादि-आदी चत्तारि जादीओ, तसकाओ, तिण्णि जोग, तिण्णि वेद, चत्तारि कसाय, दो अण्णाण, असंजमो, दो दंसण, दवेण काउ-सुक्कलेस्सा, भावेण छ लेस्साओ; भवसिद्धिया अभवसिद्धिया, मिच्छत्तं, सणिणो असणिणो, आहारिणो अणाहारिणो, सागारुखजुत्ता हाँति अणागारुवजुत्ता वा।
और अचक्षु ये दो दर्शन, द्रव्य और भावसे छहों लेश्याएं, भव्यसिद्धिक, अभव्यसिद्धिक मिथ्यात्व, संक्षिक, असंक्षिक आहारक, साकारोपयोगी और अनाकारोपयोगी होते हैं।
____ उन्हीं त्रसकायिक मिथ्यादृष्टि जीवोंके अपर्याप्तकालसंबन्धी आलाप कहने पर एक मिथ्यादृष्टि गुणस्थान, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रय, असंही पंचेन्द्रिय और संनी पंचेन्द्रिय संबन्धी पांच अपर्याप्त जीवसमास, संशी पंचेन्द्रियोंके छहों अपर्याप्तियां, असंशी पंचेन्द्रिय और विकलेन्द्रियोंके पांच अपर्याप्तियां; संशी पंचेन्द्रियसे लेकर द्वीन्द्रिय जीवोंतक क्रमसे सात प्राण, सात प्राण, छह प्राण, पांच प्राण और चार प्राण; चारों संज्ञाएं, चारों गतियां, द्वीन्द्रियजातिको आदि लेकर चार जातियां, त्रसकाय, औदारिकमिश्रकाययोग, वैक्रियिकमिश्रकाययोग और कार्मणकाययोग ये तीन योग; तीनों वेद, चारों कषाय, कुमति और कुश्रुत ये दो अज्ञान, असंयम, चक्षु और अचक्षु ये दो दर्शन, द्रव्यसे कापोत और शुक्ल लेश्याएं, भावसे छहों लेश्याएं, भव्यसिद्धिक, अभव्यसिद्धिक, मिथ्यात्व, संशिक, असंक्षिक, आहारक, अनाहारक, साकारोपयोगी और अनाकारोपयोगी होते हैं।
नं. २३९
प्रसकायिक मिथ्यादृष्टि जीवोंके अपर्याप्त आलाप. | गु. जी. प. प्रा. सं. ग. ई. (का. यो. वे.क. सा. ( संय. द. | ले. [म. स. सझि. आ. | उ. । १ ५ ६अ. ४|४|१| ३ |३|४|२ १ २ द्र. २२/१२ २ । २
औ.मि. कुम. असं. चक्षु का. म. मि. सं. आहा. साका. वै.मि. ! कुश्रु. अच. शु. अ. असं. अना. अना.
त्रस."
भा.६
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