Book Title: Shatkhandagama Pustak 02
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
View full book text
________________
१, १.] संत-परूवणाणुयोगद्दारे काय-आलाववण्णणं
[ ६२५ सण्णाओ, चत्तारि गदीओ, वेइंदियजादि-आदी चत्तारि जादीओ, तसकाओ, तेरह जोग, तिण्णि वेद, चत्तारि कसाय, तिण्णि अण्णाण, असंजम, दो दंसण, दव-भावेहि छ लेस्साओ, भवसिद्धिया अभवसिद्धिया, मिच्छत्तं, सण्णिणो असण्णिणो, आहारिणो अणाहारिणो, सागारुवजुत्ता होति अणागारुवजुत्ता वा ।
तेसिं चेव पज्जत्ताणं भण्णमाणे अत्थि एयं गुणहाणं, पंच जीवसमासा, छ पजत्तीओ पंच पञ्जत्तीओ, दस पाण णव पाण अट्ठ पाण सत्त पाण छ पाण, चत्तारि सण्णाओ, चत्तारि गदीओ, बेइंदियजादि-आदी चत्तारि जादीओ, तसकाओ, दस जोग, तिण्णि वेद, चत्तारि कसाय, तिणि अण्णाण, असंजमो, दो दंसण, दव्य-भावेहि छ लेस्सा,
और सात प्राण, चतुरिन्द्रियके आठ प्राण और छह प्राण, त्रीन्द्रियोंके सात प्राण और पांच प्राण, द्वीन्द्रियोंके छह प्राण और चार प्राणः चारों संज्ञाएं, चारों गतियां, द्वीन्द्रियजातिको आदि लेकर चार जातियां, त्रसकाय, आहारककाययोग और आहारकमिश्रकाययोगके विना तेरह योग, तीनों वेद, चारों कषाय, तीनों अज्ञान, असंयम, चक्षु और अचक्षु ये दो दर्शन, द्रव्य और भावसे छहों लेश्याएं, भव्यसिद्धिक, अभव्यसिद्धिक; मिथ्यात्व, संक्षिक, असंक्षिक, आहारक, अनाहारक; साकारोपयोगी और अनाकारोपयोगी होते हैं।
उन्हीं त्रसकायिक मिथ्यादृष्टि जीवोंके पर्याप्तकालसंबन्धी आलाप कहने पर-एक मिथ्यादृष्टि गुणस्थान, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय, संशी और असंझी पंचेन्द्रिय जीवसंबन्धी पांच पर्याप्त जीवसमास, संक्षी पंचेन्द्रियोंके छहों पर्याप्तियां, असंही पंचेन्द्रिय और विकले न्द्रियोंके पांच पर्याप्तियां; संज्ञी पंचेन्द्रियसे लेकर द्वीन्द्रिय जीवों तक क्रमसे दश प्राण, नौ प्राण, आठ प्राण, सात प्राण, और छह प्राण; चारों संज्ञाएं, चारों गतियां, द्वीन्द्रियजातिको आदि लेकर चार जातियां, सकाय, चारों मनोयोग, चारों वचनयोग, औदारिककाययोग और वैक्रियिककाययोग ये दश योग, तीनों वेद, चारों कषाय, तीनों अज्ञान, असंयम, चक्षु
नं. २३८ त्रसकायिक मिथ्यादृष्टि जीवोंके पर्याप्त आलाप. | गु. | जी. प. प्रा. सं. ग. ई. का. यो. वे. क. ज्ञा. । संय. द. ले. । म. स. संज्ञि. १५वी.प. ६१०४४ ४१| १० ३ ४ | ३ | १२ | द्र.६ २०१२ मि. जी. ५.९ । द्वी. स. म. ४ अज्ञा. असं. चक्षु. भा. ६ भ. मि. सं. आहा.साका
अच.
असं.
.
]
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org