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१, १. संत-पख्वणाणुयोगदारे काय-आलाववण्णणं
[ ५९१ जीवसमासा पंच लद्धिअपज्जत्तजीवसमासा एवं पण्णारस जीवसमासा हवंति । पुढविकाइया दुविहा पज्जत्ता अपज्जत्ता, आउकाइया दुविहा पज्जत्ता अपज्जत्ता, तेउ काइया दुविहा पज्जत्ता अपज्जत्ता, वाउकाइया दुविहा पज्जत्ता अपज्जत्ता, वणप्फइकाइया दुविहा पज्जत्ता अपजत्ता, तसकाइया दुविहा पजत्ता अपजसा एवं बारस जीवसमासा हवंति । छ णिबत्तिपज्जत्तजीवसमासा छ णिव्यत्तिअपजत्तजीवसमासा छ लद्धिअपज्जत्तजीवसमासा एवमहारस जीवसमासा हवंति । एइंदिया दुविहा बादरा सुहुमा, बादरा दुविहा पज्जत्ता अपज्जत्ता, सुहुमा दुविहा पज्जत्ता अपज्जत्ता, वेइंदिया दुविहा पज्जत्ता अपज्जत्ता, तेइंदिया दुविहा पज्जत्ता अपज्जत्ता, चउरिदिया दुविहा पजत्ता अपज्जत्ता, पंचिंदिया दुविहा सणिणो असण्णिणो, सणिणो दुविहा पज्जत्ता अपज्जत्ता, असणिणो दुविहा पज्जत्ता अपज्जत्ता त्ति एवं चोद्दस जीवसमासा हवंति । सत्त णिव्वत्तिपज्जत्ता सत्त णिवत्तिअपज्जत्ता सत्त लद्धिअपजत्ता एदे सब्बे घेत्तूण
पंचेन्द्रिय, असंही पंचेन्द्रिय और विकलेन्द्रिय जीवोंके पांच निर्वृत्तिपर्याप्तक जीवसमास, पांच निर्वृत्यपर्याप्तक जीवसमास और पांच लब्ध्यपर्याप्तक जीवसमास इसप्रकार पन्द्रह जीवसमास होते हैं। पृथिवीकायिक जीव दो प्रकरके होते हैं, पर्याप्तक और अपर्याप्तक । अप्कायिक जीव दो प्रकारके होते हैं, पर्याप्तक और अपर्याप्तक । तैजस्कायिक जीव दो प्रकारके होते हैं , पर्याप्तक और अपर्याप्तक। वायुकायिक जीव दो प्रकारके होते हैं, पर्याप्तक और अपर्याप्तक । वनस्पतिकायिक जीव दो प्रकारके होते हैं, पर्याप्तक और अपर्याप्तक। सकायिक जीव दो प्रकारके होते हैं, पर्याप्तक और अपर्याप्तक इसप्रकार बारह जीवसमास होते हैं। छहों कायिक जीवोंकी अपेक्षा छ निर्वृत्तिपर्याप्तक जीवसमास, छ निर्वृत्यपर्याप्तक जीवसमास और छह लब्ध्यपर्याप्तक जीवसमास इसप्रकार अठारह जीवसमास होते हैं। एकेन्द्रिय जीव दो प्रकारके होते हैं, बादर और सूक्ष्म । बादर दो प्रकारके होते हैं, पर्याप्तक और अपर्याप्तक । सूक्ष्म दो प्रकारके होते हैं, पर्याप्तक और अपर्याप्तक । द्वीन्द्रिय जीव दो प्रकारके होते हैं, पर्याप्तक और अपर्याप्तक । त्रीन्द्रिय जीव दो प्रकारके होते हैं, पर्याप्तक और अपर्याप्तक । चतुरिन्द्रिय जीव दो प्रकारके होते हैं, पर्याप्तक और अपर्याप्तक । पंचेन्द्रिय जीव दो प्रकारके होते हैं, संशिक और असंशिक । संशिक जीव दो प्रकारके होते हैं, पर्याप्तक और अपर्याप्तक। असंक्षिक जीव दो प्रकारके होते हैं, पर्याप्तक और अपर्याप्तक। इसप्रकार चौदह जीवसमास होते हैं। बादर एकेन्द्रिय, सूक्ष्म एकेन्द्रिय, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय, संशी पंचेन्द्रिय और असंक्षी पंचेन्द्रिय इन सात प्रकारके जीवोंकी अपेक्षा सात निवृत्तिपर्याप्तक जीवसमास, सात निर्वृत्यपर्याप्तक जीवसमास और सात सध्यपर्याप्तक जीवसमास ये सब मिलकर इक्कीस जीवसमास होते हैं। पृथिवी
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