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छक्खंडागमे जीवाणं
[ १, १.
मुग्गवण्णलेस्साओ । एवं बादरवाऊणं तेसिं पञ्जत्ताणं च दव्वलेस्साओ हवंति । जदि विमुग्गा अणेयवण्णा, तो वि रूढिवसा सामलवण्णो मुग्गवण्णो त्ति घेष्पदि । हुमवाऊणं सुहुमतेउ-भंगो ।
श्रवणप्फइकाइयाणं भण्णमाणे अत्थि एयं गुणट्ठाणं, वारस जीवसमासा, चत्तारि पत्तीओ चत्तारि अपज्जतीओ, चत्तारि पाण तिष्णि पाण, चत्तारि सण्णाओ, तिरिक्खगदी, एइंदियजादी, वणप्फइकाओ, तिण्णि जोग, णवुंसयवेद, चत्तारि कसाय, दो
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और मूंगके वर्णवाली लेश्याएं होती हैं । इसीप्रकार बादर वायुकायिक सामान्य जीवों के और उन्हीं बाद वायुकायिक पर्याप्त जीवोंके द्रव्य लेश्याएं होती हैं । यद्यपि मूंग अनेक वर्णवाली होती है, तो भी रूढिके वशसे 'श्यामलवर्ण' ही मूंगका वर्ण प्रकृतमें ग्रहण किया गया है। सूक्ष्म वायुकायिक जीवोंके आलाप सूक्ष्म तैजस्कायिक जीवों के आलापोंके समान जानना चाहिए |
जीवोंके चार बादरमित्य
वनस्पतिकायिक जीवोंके सामान्य आलाप कहने पर - एक मिध्यादृष्टि गुणस्थान, और बारह जीवसमास होते हैं, जिनमें सप्रतिष्ठित प्रत्येक वनस्पतिकायिक-पर्याप्त, सप्रतिष्ठित प्रत्येकवनस्पतिकायिक अपर्याप्त, अप्रतिष्ठित प्रत्येक वनस्पतिकायिक-पर्याप्त, अप्रतिठित प्रत्येक वनस्पतिकायिक अपर्याप्त, इसप्रकार प्रत्येक वनस्पतिकायिक जीवसमास होते हैं। बादर नित्य निगोद-साधारणवनस्पतिकायिक-पर्याप्त, निगोद-साधारण वनस्पतिकायिक अपर्याप्त, सूक्ष्मनित्यनिगोद-साधारणवनस्पतिकायिकपर्याप्त, सूक्ष्मनित्यनिगोद-साधारणवनस्पतिकायिक अपर्याप्त, बादरचतुर्गतिनिगोद-साधारणवनस्पतिकायिक-पर्याप्त, बादरचतुर्गति निगोद-साधारणवनस्पतिकायिक अपर्याप्त, सूक्ष्म चतुर्गतिनिगोद-साधारणवनस्पतिकायिक-पर्याप्त और सूक्ष्मचतुर्गतिनिगोद-साधारण-वनस्पतिकायिक अपर्याप्त, इसप्रकार साधारणवनस्पतिकायिक जीवोंके आठ जीवसमास होते हैं। चार पर्याप्तियां, चार अपर्याप्तियां; चार प्राण, तीन प्राण, चारों संज्ञाएं तिर्यंचगति, एकेन्द्रियजाति, वनस्पतिकाय, औदारिककाययोग, औदारिकमिश्रकाययोग और कार्मणका योग ये तनि योगः नपुंसकवेद, चारों कषाय, कुमति और कुश्रुत ये दो अज्ञान,
नं. २२२
(गु.) जी, प. प्रा. सं. ग.) इं. का. यो. वे. क. ज्ञा. | संय. द.
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मि. साधा. ४अ ३
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प्रये. ४
वनस्पतिकायिक जीवोंके सामान्य आलाप.
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१ द्र. ६ कुम. असं अच. मा. ३ भ. मि. असं. आहा. साका.
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