Book Title: Shatkhandagama Pustak 02
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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१, १.] संत-परूवणाणुयोगद्दारे काय-आलाववण्णणं
[६०१ दुवजुत्ता वा।
तेंसि चेव पज्जत्ताणं भण्णमाणे अत्थि चोदस गुणट्ठाणाणि, एको वा दो या तिणि वा चत्तारि वा पंच वा छव्या सत्त वा अट्ट वा णव वा दस वा एकारह वा बारह वा तेरह वा चउद्दस वा पण्णारह वा सोलस वा सत्तारस वा अट्ठारह वा एगुणवीस वा जीवसमासा, छ पजत्तीओ पंच पञ्जत्तीओ चत्तारि पज्जत्तीओ, दस पाण णव पाण अट्ठ पाण सत्त पाण छ पाण चत्तारि पाण चत्तारि पाण एक पाण, चत्तारि सण्णाओ खीणसण्णा वि अत्थि, चत्तारि गदीओ, एइंदियजादि-आदी पंच जादीओ, पुढविकायादी छक्काया, एगारह जोग अजोगो वि अस्थि, तिण्णि वेद अवगदवेदो वि अत्थि, चत्तारि कसाय अकसाओ वि अस्थि, अढ णाण, सत्त संजम, चत्तारि सण, दव्य-भावेहि छ लेस्साओ अलेस्सा वि अत्थि, भवसिद्धिया अभवसिद्धिया, छ सम्मत्तं,
आहारक, अनाहारक; साकारोपयोगी, अनाकारोपयोगी और साकार अनाकार इन दोनों उपयोगोंसे युगपत् उपयुक्त भी होते हैं।
उन्हीं षट्-कायिक जीवोंके पर्याप्त कालसंबधी आलाप कहने पर-चौदहों गुणस्थान, पूर्वमें कहे गये पर्याप्तक जीवसंबन्धी एक, अथवा दो, अथवा तीन, अथवा चार, अथवा पांच, अथवा छह, अथवा सात, अथवा आठ, अथवा नौ, अथवा दश, अथवा ग्यारह, अथवा बारह, अथवा तेरह, अथवा चौदह, अथवा पन्द्रह, अथवा सोलह, अथवा सत्रह, अथवा अठारह, अथवा उन्नीस जीवसमास होते हैं, छहों पर्याप्तियां, पांच पर्याप्तियां और चार पर्याप्तियां पूर्वमें कहे गये पर्याप्तक जीवसंबन्धी दशों प्राण, नौ प्राण, आठ प्राण, सात प्राण, छह प्राण, चारप्राण, चार प्राण और एक प्राण; चारों संज्ञाएं तथा क्षीणसंशास्थान भी है, चारों गतियां, एकेन्द्रिय जाति आदि पांचों जातियां, पृथिवीकाय आदि छहों काय, चारों मनोयोग, चारों वचनयोग,
आदारिककाययोग, वैक्रियिककाययोग और आहारककाययोग ये ग्यारह योग और अयोगस्थान भी है। तीनों वेद तथा अपगतवेदस्थान भी है, चारों कषाय तथा अकषायस्थान भी है, आठों शान, सातों संयम, चारों दर्शन, द्रव्य और भावसे छहों लेश्याएं तथा अलेश्यास्थान भी है, भव्यासिद्धिक, अभव्यासिद्धिक, छहों सम्यक्त्व, संक्षिक, असंक्षिक तथा संक्षिक और
नं. २१३
षटकायिक जीवोंके सामान्य आलाप. ।गुजी.प. प्रा. सं./ ग.) इं. का.यो. वे. क. ना. | संय. द. ले. भ. सं. संज्ञि. आ. उ. | १४५७ प.अ १०,७ ९,७/४
1१५३/४८७४द्र.६ २६ २ | २ | २
भा.६ भ. सं. आहा. साका. ५,५,६,४ ४,३
अले. अ. असं. अना. अना. ४,४४,२१
अनु.
| यु.उ.
क्षीणसं. ५
अयोग, अपग. अकषा.
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