Book Title: Shatkhandagama Pustak 02
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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छक्खडागमे जीवाणं
[ १, १०
चैव सव्वेदे सत्तावण्ण जीवसमासा हवंति । एदे' जीवसमासमेया' सव्व-ओधेसु वत्तव्वा ।
छ पजत्तीओ छ अपजतीओ पंच पजत्तीओ पंच अपजत्तीओ चत्तारि पज्जतीओ चत्तारि अपज्जत्तीओ, दस पाण सत्त पाण णव पाण सत्त पाण अट्ठ पाण छ पाण सत्त पाण पंच पाण छ पाण चत्तारि पाण चत्तारि पाण तिष्णि पाण चत्तारि पाण दो पाण एग पाण, चत्तारि सण्णाओ खीणसण्णा वि अस्थि, चत्तारि गदीओ, एइंदियजादि -आदी पंच जादीओ, पुढविकायादी छक्काया, पण्णारह जोग अजोगो वि अस्थि, तिणि वेद अवगदवेदो वि अस्थि, चत्तारि कसाय अकसाओ वि अत्थि, अट्ठ णाण, सत्त संजम, चत्तारि दंसण, दव्व-भावेहि छ लेस्साओ अलेस्सा वि अस्थि, भवसिद्धिया अभवसिद्धिया, छ सम्मत्तं, सणणो असणिणो णेव सणिणो णेव असणणो वि अस्थि, आहारिणो अणाहारिणो, सागारुवजुत्ता होंति अणागारुवजुत्ता वा सागार - अणागारेहि जुगव
हैं। ये उपर्युक्त जीवसमासोंके भेद समस्त ओघालापोंमें कहना चाहिए ।
जीवसमास आलापके आगे संशी पंचेन्द्रिय जीवोंके पर्याप्तकाल में और अपर्याप्तकाल में छहों पर्याप्तियां, छहों अपर्याप्तियां; असंज्ञी पंचेन्द्रिय और विकलत्रय जीवोंके पर्याप्त अपर्याप्तकालमें क्रमशः पांच पर्याप्तियां, पांच अपर्याप्तियां: एकेन्द्रिय जीवोंके पर्याप्त अपर्याप्तकाल में क्रमशः चार पर्याप्तियां; चार अपर्याप्तियांः संज्ञी पंचेन्द्रिय जीवोंके पर्याप्त अपर्याप्तकालमें क्रमशः दशों प्राण, सात प्राण; असंज्ञी पंचेन्द्रिय जीवोंके पर्याप्त अपर्याप्तकालमें क्रमशः नौ प्राण, सात प्राणः चतुरिन्द्रिय जीवोंके पर्याप्त अपर्याप्तकाल में क्रमशः आठ प्राण, छह प्राणः श्रीन्द्रिय जीवोंके पर्याप्त अपर्याप्तकालमें क्रमशः सात प्राण, पांच प्राणः द्वीन्द्रिय जीवोंके पर्याप्त अपर्याप्तकालमें क्रमशः छह प्राण, चार प्राणः एकेन्द्रिय जीवोंके पर्याप्त अपर्याप्तकालमें क्रमशः चार प्राण, तीन प्राणः सयोगकेवली जिनोंके चार प्राण, तथा समुद्धातकी अपर्याप्त अवस्थामें दो प्राण और अयोगकेवली जिनोंके एक आयु प्राण होता है । चारों संज्ञाए तथा क्षीणसंज्ञास्थान भी है, चारों गतियां, एकेन्द्रियजाति आदि पांचों जातियां, पृथिवीकाय आदि छहों काय, पन्द्रहों योग तथा अयोगस्थान भी है, तीनों वेद तथा अपगत वेदस्थान भी है, चारों कषाय तथा अकषायस्थान भी है, आठों ज्ञान, सातों संयम, चारों दर्शन, द्रव्य और भावसे छहीं लेश्याएं तथा अलेश्यास्थान भी है, भव्यसिद्धिक, अभव्यसिद्धिक, छहों सम्यक्त्व, संशिक असंक्षिक तथा संशिक और असंज्ञिक इन दोनों विकल्पोंसे रहित भी स्थान है,
१ प्रतिपु ' वीए' इति पाठः ।
२ सामण्णजीव तसथावरेषु इगिबिगलसयलचरिमदुगे । इंदियकाये परिमस्त य दुतिचदुपणगभेद मुदे ॥ पणजुगले तससहिये तसस्स दुतिश्चदुरपणगभेदजदे । छददुगपत्तेयम्हि य तसस्स तियचदुरपणगभेदजुदे || सगजुगलम्हि तसस्स य पणभंगजुदेसु होंति उणवीसा । एयादुणवसोति य इगिवितिगुणिदे हवे ठाणा || सामण्णेण तिपंती पदमा बिदिया अपुण्णगे इदरे । पज्जचे लद्धिअपज्जतेऽपढमा हवे पंती ॥ गो. जी. ७५ ७८०
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