Book Title: Shatkhandagama Pustak 02
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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१, १.] संत-परूवणाणुयोगद्दारे काय-आलाववण्णणं
[६०३ अपज्जत्तीओ चत्तारि अपज्जत्तीओ, सत्त पाण सत्त पाण छ पाण पंच पाण चत्तारि पाण तिणि पाण दो पाण, चत्तारि सण्णाओ खीणसण्णा वा, चत्तारि गदीओ, एइंदियजादिआदी पंच जादीओ, पुढविकायादी छक्काय, चत्तारि जोग, तिणि वेद अवगदवेदो वा, चत्तारि कसाय अकसाओ वा, छ णाण, चत्तारि संजम, चत्तारि दंसण, दव्वेण काउसुक्कलेस्साओ, भावेण छ लेस्सा; भवसिद्धिया अभवसिद्धिया, पंच सम्मत्तं, सण्णिणो असण्णिणो अणुभया वा, आहारिणो अणाहारिणो, सागारुवजुत्ता होंति अणागारुवजुत्ता वा तदुभया वा।
प्राण, पांच प्राण, चार प्राण, तीन प्राण, दो प्राण; चारों संज्ञाएं तथा क्षीणसंशास्थान भी
चारों गतियां. एकेन्द्रियजाति आदि पांचों जातियां. प्रथिवीकाय आदि छहों काय, औदारिकमिश्र, वैक्रियिकमिश्र, आहारकमिश्र और कार्मण ये चार योग; तीनों वेद तथा अपगतवेदस्थान भी है, चारों कषाय तथा अकषायस्थान भी है, विभंगावधि और मनः. पर्ययज्ञानके विना छह ज्ञान, असंयम, सामायिक, छेदोपस्थापना और यथाख्यात ये चार संयम; चारों दर्शन, द्रव्यसे कापोत और शुक्ल लेश्याएं, भावसे छहों लेश्याएं; भव्यसिद्धिका अभव्यसिद्धिक; सम्यग्मिथ्यात्वके विना पांच सम्यक्त्व, संक्षिक, असंशिक तथा अनुभयस्थान भी है; आहारक, अनाहारक; साकारोपयोगी, अनाकारोपयोगी और उभय उपयोगोंसे युगपत् उपयुक्त भी होते हैं।
विशेषार्थ- ऊपर जो सत्तावन जीवसमास कहे हैं उनमें अपर्याप्त सामान्यके उन्नीस हैं जिनका यहां पर 'एक अथवा दो, दो अथवा चार, इत्यादि संख्याओंके कथनमें आई हुई पूर्ववर्ती संख्याओंका एक, दो, तीन इत्यादि संख्याओंसे निर्देश किया है । अपर्याप्तके निवृत्यपर्याप्त और लब्ध्यपर्याप्त ऐसे दो भेद कर लेने पर उनका निर्देश दो, चार, छह इत्यादि संख्याओंके द्वारा किया गया है। यहां पर इतना और समझ लेना चाहिये कि पूर्व पूर्ववर्ती संख्याएं जीवसमासोको सामान्यरूपसे और उत्तर उत्तरवर्ती संख्याएं उनको विशेषरूपसे बतलाती हैं। इसका यह अभिप्राय हुआ कि किसी भी संख्याके द्वारा संपूर्ण अपर्याप्त जीव संग्रहात कर लिये गये हैं। भिन्न भिन्न संख्याएं केवल उनके भेद-प्रभेदोंको सूचित करनेके लिये ही दी गई
नं.२१५
षट्कायिक जीवोंके अपर्याप्त आलाप. गु. जी. | प. प्रा. सं. ग. इं.का. यो. वे. ( क. ज्ञा. । | संय. द. | ले. भ. | स. संनि. आ. उ. ३८६अ.
औ मि...
में विभं असं. का. म. सम्य. सं. आहा. वै.मि. मनः. सामा. शु. अ. विना. असं. अना. अना. आ.मि. विना. छेदो.। भा.६/ अनु. कार्म.
यथा.
क्षीणसं.
अपग, अकषा.
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