Book Title: Shatkhandagama Pustak 02
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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१, १.] संत-परूवणाणुयोगद्दारे काय-आलाववण्णणं
[६०५ लेस्साओ; भवसिद्धिया अभवसिद्धिया, मिच्छत्तं, असणिणो, आहारिणो अणाहारिणो, सागारुवजुत्ता होंति अणागारुवजुत्ता वा।
तेसिं चेव पज्जत्ताणं भण्णमाणे अत्थि एवं गुणट्ठाणं, दो जीवसमासा चत्तारि वि जीवसमासा, चत्तारि पज्जत्तीओ, चत्तारि पाण, चत्तारि सण्णा, तिरिक्खगदी, एइंदियजादी, पुढविकाओ, ओरालियकायजोगो, णqसयवेद, चत्तारि कसाय, दो अण्णाण, असंजमो, अचखुदंसण, दव्वेण छ लेस्सा, भावेण किण्ह-णील-काउलेस्सा; भवसिद्धिया अभवसिद्धिया, मिच्छत्तं, असण्णिणो, आहारिणो, सागारुवजुत्ता होंति अमागारु. वजुत्ता वा ।
नील और कापोत लेश्याएं; भव्यासिद्धिक, अभव्यसिद्धिक; मिथ्यात्व, असंशिक, आहारक, अनाहारक; साकारोपयोगी और अनाकारोपयोगी होते हैं।
उम्हीं पृथिवीकायिक जीवोंके पर्याप्तकालसंबन्धी आलाप कहने पर-एक मिथ्याहष्टि गुणस्थान, बांदरपृथिवीकायिक-पर्याप्त और सूक्ष्मपृथिवीकायिक-पर्याप्त ये दो जीवसमास, अथवा शुद्ध बादरपृथिवीकायिक पर्याप्त शुद्ध सूक्ष्मपृथिवीकायिक-पर्याप्त, खर बादरपृथिवीकायिक-पर्याप्त
और खर सूक्ष्मपृथिवीकायिक-पर्याप्त ये चार जीवसमास;चार पर्याप्तियां, चारप्राण, चारों संक्षाएं, तिर्यंचगति, एकेन्द्रियजाति, पृथिवीकाय, औदारिककाययोग, नपुंसकवेद, चारों कषाय, कुमाति
और कुश्रुत ये दो अज्ञान, असंयम, अचक्षुदर्शन, द्रव्यसे छहों लेश्याएं, भाषसे कृष्ण, नील और कापोत लेश्याएं; भव्यसिद्धिक, अभव्यसिद्धिका मिथ्यात्व, असंशिक, आहारक, साकारोपयोगी और अनाकारोपयोगी होते हैं।
विशेषार्थ- ऊपर पृथिवीकायिक जीवोंके पर्याप्त आलाप कहते समय दो अथवा चार जीवसमास बतलाये हैं। उनमें दो जीवसमास बतलानेका कारण तो स्पष्ट ही है। परंतु विकल्पसे जो चार जीवसमास बतलाये गये हैं उसके दो कारण प्रतीत होते हैं एक तो यह कि गोम्मटसारकी जीवप्रबोधिनी टीकामें जीवसमासोंका विशेष वर्णन करते समय पृथिवीके शुद्धपृथिवी और खरपृथिवी ऐसे दो भेद किये हैं। ये दो भेद बादर और सूक्ष्मके भेदसे दो दो प्रकारके हो जाते हैं । इसप्रकार पर्याप्त अवस्था विशिष्ट इन चारों भेदोंके ग्रहण करने पर चार
म. २१७
पृथिवीकायिक जीवोंके पर्याप्त आलाप. | गु. जी. पं. प्रा. सं. ग. | इं. का. यो. । वे. क. झा. | संय. द. ले. म. स. संक्षि. आ.
उ.
मि. बा.प.
ति.
पृ. औदा.
कुम. असं. अच. भा.३ म. मि. असं. आहा. साका. कुभु. अशु. अ.
अना।
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