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५९६] छक्खंडागमे जीवट्ठाणं
[१, १. बादरा सुहुमा त्ति, सब्बे बादरा सव्वे च सुहुमा पज्जत्ता अपज्जत्ता इदि चउबिहा हवंति, तसकाइया दुविहा पज्जत्ता अपज्जत्ता चेदि एवमेदे बावीस जीवसमासा । णिव्वत्तिपज्जत्तजीवसमासा एकारह, णिव्यत्ति-अपज्जत्तजीवसमासा एक्कारह, लद्धिअपज्जत्तजीवसासा एक्कारह एवं तेत्तीस जीवसमासा हवंति। बावीस-जीवसमासाणमभतरे तसपज्जत्तापजत्तजीवसमासे अवणिय तसकाइया दुविहा हवंति समणा अमणा चेदि, समणा दुविहा पज्जत्ता अपज्जत्ता, अमणा दुविहा पज्जत्ता अपज्जत्ता एदे चत्तारि पक्खित्ते चउवीस जीबसमासा हवंति । बारस णिव्वत्तिपजत्तजीवसमासा वारस णिव्यत्ति-अपज्जत्तजीवसमासा वारस लद्धि-अपज्जत्तजीवसमासा एवमेदे छत्तीस जीवसमासा हवंति। पुबिल्ल-चउवीसण्हं मज्झे अमणाणं पज्जत्त-अपज्जत्त-दो-जीवसमासे अवणिय अमणा दुविहा सयलिंदिया वियलिंदिया चेदि, सयलिंदिया दुविहा पज्जत्ता अपज्जत्ता, वियलिंदिया दुविहा पज्जत्ता अपज्जत्ता चेदि एदे चत्तारि पक्खित्ते छव्वीस जीवसमासा हवंति । तेरस णिवत्तिपज्जत्तजीवसमासा तेरस णिव्यत्तिअपज्जत्तजीव
और सूक्ष्म । ये सभी बादर और सभी सूक्ष्म जीव पर्याप्तक और अपर्याप्तक होते हैं। इसप्रकार प्रत्येक एक एक कायके जीव चार चार प्रकारके हो जाते हैं। प्रसकायिक जीव दो प्रकारके होते हैं, पर्याप्तक और अपर्याप्तक । इसप्रकार ये सब मिलाकर बावीस जीव. समास हो जाते हैं। पृथिवीकायिक, जलकायिक. अग्निकायिक, वायुकायिक और वनस्पतिकायिकके बादर और सूक्ष्मके भेदसे दश भेद होते है और उसकायिक इन ग्यारह प्रकारके जीवोंकी अपेक्षा ग्यारह निर्वृत्तिपर्याप्तक जीवसमास, ग्यारह निर्वृत्यपर्याप्तक जीवसमास और ग्यारह लभ्यपर्याप्तक जीवसमास इसप्रकार सब मिलाकर तेतीस जीवसमास होते हैं। पूर्वोक्त बावीस जीवसमासोंमेंसे त्रसकायिक जीवोंके पर्याप्तक और अपर्याप्तक ये दो जीवसमास निकालकर त्रसकायिक जीव दो प्रकारके होते हैं, समनस्क (संशी) और अमनस्क (असंही)। समनस्क जीव दो प्रकारके होते हैं, पर्याप्तक, अपर्याप्तक । अमनस्क जीव दो प्रकारके होते हैं, पर्याप्तक और अपर्याप्तक । ये चार जीवसमास मिलाने पर चौबीस जीवसमास होते हैं। पृथिवीकायिक, जलकायिक, अग्निकायिक, वायुकायिक और वनस्पतिकायिक जीवोंके बादर और सूक्ष्मके भेदसे दश भेद और समनस्क त्रसकायिक तथा अमनस्क त्रसकायिक इन बारह प्रकारके जीवोंकी अपेक्षा बारह निर्वृत्तिपर्याप्तक जीवसमास, बारह निर्वृत्यपर्याप्तक जीवसमास और बारह लब्ध्यपर्याप्तक जीवसमास ये सब मिलाकर छत्तीस जीवसमास होते हैं। पूर्वोक्त चौबीस जीवसमासोंमेंसे अमनस्क जीवोंके पर्याप्तक
और अपर्याप्तक ये दो जीवसमास निकाल कर अमनस्क जीव दो प्रकारके होते हैं, सकलेन्द्रिय और विकलेन्द्रिय । सकलेन्द्रिय जीव दो प्रकारके होते हैं, पर्याप्तक और अपर्याप्तक । विकलेन्द्रिय जीव दो प्रकारके होते हैं, पर्याप्तक और अपर्याप्तक। इन चार जीवसमासोको मिला देने पर छब्बीस जीवसमास होते हैं। पांचो स्थावरकायिक जीवोंके बादर और
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