Book Title: Shatkhandagama Pustak 02
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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१, १.] संत-परूवणाणुयोगद्दारे काय-आलाववण्णणं
[ ५९५ बादरणिगोदपडिद्विदवदिरित्त-पत्तेयसरीरा दुविहा पज्जत्ता अपज्जत्ता, साधारणसरीरा दुविहा पज्जत्ता अपज्जत्ता, तसकाइया दुविहा वियलिंदिया सयलिंदिया चेदि, सयलिंदिया दुविहा पजत्ता अपजत्ता, वियलिंदिया दुविहा पञ्जत्ता अपजत्ता, एवमहारस जीवसमासा हवंति । णव णिव्यत्तिपज्जत्तजीवसमासा णव णिव्यत्ति-अपज्जत्तजीवसमासा णव लद्धि-अपज्जत्तजीवसमासा' एदे सव्वे वि घेतूण सत्तावीस जीवसमासा हवंति । पुबिल्ल-अट्ठारस-जीवसमासान्भंतरे साधारण वणप्फइपज्जत्तापज्जत्तजीवसमासे अवणिय साधारणवप्फइकाइया दुविहा णिचणिगोदा चदुगदिणिगोदा चेदि। णिच्चणिगोदा दुविहा पज्जत्ता अपज्जत्ता, चदुगदिणिगोदा दुविहा पजत्ता अपज्जत्ता चेदि एदे चत्तारि जविसमासे पक्खित्ते वीस जीवसमासा हवंति । दस णिव्यत्तिपज्जत्तजीवसमासा दस णिव्वत्ति-अपज्जत्तजीवसमासा दस लद्धि-अपज्जत्तजीवसमासा एदे तीस जीवसमासा हवंति । पुढविकाइया आउकाइया तेउकाइया वाउकाइया वणप्फकाइया एदे सन्वे दुविहा
बादरनिगोदप्रतिष्ठितसे भिन्न अर्थात् बादरनिगोदअप्रतिष्ठितप्रत्येकशरीर जीव दो प्रकारके होते हैं, पर्याप्तक और अपर्याप्तक । साधारणशरीर जीव दो प्रकारके होते हैं, पर्याप्तक और अपर्याप्तक । त्रसकायिक जीव दो प्रकारके होते हैं, विकलेन्द्रिय और सकलेन्द्रिय । सकलेन्द्रिय जीव दो प्रकारके होते हैं, पर्याप्तक और अपर्याप्तक। विकलेन्द्रिय जीव दो प्रकारके होते हैं, पर्याप्तक और अपर्याप्तक। इसप्रकार ये अठारह जीवसमास होते हैं। पृथिवीकायिक, जलकायिक, अग्निकायिक, वायुकायिक, सप्रतिष्ठित प्रत्येकवनस्पतिकायिक, अप्रतिष्ठित प्रत्येकवनस्पतिकायिक, साधारणवनस्पतिकायिक, सकलेन्द्रिय और विकलेन्द्रिय इन नौ प्रकारके जीवोंकी अपेक्षा नौ निवृत्तिपर्याप्तक जीवसमास, नौ निर्वृत्यपर्याप्तक जीवसमास और नौ लब्ध्यपर्याप्तक जीवसमास ये सब मिलाकर सत्तावीस जीवसमास होते हैं । पूर्वमें कहे गये अठारह जीवसमासोंमेंसे साधारणवनस्पतिकायिक जीवोंके पर्याप्तक और अपर्याप्तक ये दो जीवसमास निकाल कर साधारणवनस्पतिकायिक जीव दो प्रकारके होते हैं, नित्यनिगोद और चतुर्गतिनिगोद। नित्यनिगोद दो प्रकारके होते हैं, पर्याप्तक और अपर्याप्तक। चतुतिनिगोद दो प्रकारके होते हैं, पर्याप्तक और अपर्याप्तक। ये चार जीवसमास मिलाने पर बीस जीवसमास होते हैं। पृथिवीकायिक, जलकायिक, अग्निकायिक, वायुकायिक, सप्रतिष्ठित-प्रत्येकवनस्पतिकायिक, अप्रतिष्ठित-प्रत्येकवनस्पतिकायिक, नित्यनिगोद, चतुर्गातिनिगोद, विकलेन्द्रिय और सकलेन्द्रिय इन दश प्रकारके जीवोंकी अपेक्षा दश निर्वृत्तिपर्याप्तक जीवसमास, दश नित्यपर्याप्तक जीवसमास और दश लब्ध्यपर्याप्तक जीवसमास ये सब मिलाकर तीस जीवसमास होते हैं। पृथिवीकायिक, जलकायिक, अग्निकायिक, वायुकायिक, वनस्पतिकायिक ये पांचों कायके जीव दो दो प्रकारके होते हैं, बादर
१ प्रतिषु ' णवलाद्ध...समासा' इति पाठो नास्ति ।
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