Book Title: Shatkhandagama Pustak 02
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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रचना और भाषाशैली युक्त समझे जाय, या अलग अलग ? यदि अलग अलग लें तो वे सब विभक्तिहीन रह जाते हैं, यदि समासरूप लें तो 'च' की कोई सार्थकता नहीं रह जाती । संशोधनमें यह प्रयत्न किया गया है कि यथाशक्ति प्रतियोंके पाठको सुरक्षित रखते हुए जितने कम सुधारसे काम चल सके उतना कम सुधार करना। किंतु अविभक्तिक पदोंको जानबूझकर विना यथेष्ट कारणके सविभक्तिक बनानेका प्रयत्न नहीं किया गया । इस कारण प्ररूपणाओंमें बहुतायतसे विभक्तिहीन पद पाये जायगे।
इन प्ररूपणाओंमें आलापोंके नामनिर्देश स्वभावतः पुनः पुनः आये हैं। प्रतियोंमें इन्हें प्रायः संक्षेपतः आदिके अक्षर देकर बिन्दु रखकर ही सूचित किया है, जैसे 'गुणट्ठाण' के स्थानपर गुण, 'पज्जत्तीओ' के स्थानपर प० आदि । यदि सब प्रतियोंमें ये संक्षिप्त रूप एकसे होते, तो समझा जाता कि वे मूलादर्श प्रतिके अनुसार हैं, अतः मुद्रितरूपमें भी उन्हें वैसे ही रखना कदाचित् उपयुक्त होता। किन्तु किसी प्रतिमें एक अक्षर लिखकर, किसीमें दो अक्षर लिखकर आदि भिन्नरूपसे संक्षेप बनाये गये हैं और किसी प्रतिमें वे पूरे रूपमें भी लिखे हैं। इसप्रकार बिन्दुसहित संक्षिप्तरूप कारंजाकी प्रतिमें सबसे अधिक और आराकी प्रतिमें सबसे कम हैं। इस अव्यवस्थाको देखते हुए आदर्श प्रतिमें बिन्दु हैं या नहीं, इस विषयमें शंका हो जानेके कारण हमने इन संक्षिप्त रूपोंका उपयोग न करके पूरे शब्द लिखना ही उचित समझा।।
प्रत्येक आलापमें बीस बीस प्ररूपणाएं हैं । पर कहीं कहीं प्रतियोंमें एक शब्दसे लगाकर पूरे आलाप तक भी छूटे हुए पाये जाते हैं । इनकी पूर्ति एक दूसरी प्रतियोंसे हो गई है, किन्तु कहीं कहीं उपलब्ध सभी प्रतियोंमें पाठ छूटे हुए हैं जैसा कि पाठ-टिप्पण व प्रति-मिलान
और छूटे हुए पाठोंकी तालिकासे ज्ञात हो सकेगा। इन पाठोंकी पूर्ति विषयको देख समझकर कर्ताकी शैलीमें ही उन्हींके अन्यत्र आये हुए शब्दोंद्वारा करदी गई है। जहां ऐसे जोड़े हुए पाठ एक दो शब्दोंसे अधिक बड़े है वहां वे कोष्ठकके भीतर रख दिये गये हैं।
मूलमें जहां कोई विवाद नहीं है वहां प्ररूपणाओंकी प्रत्येक स्थानमें संख्या मात्र दी गई है । अनुवादमें सर्वत्र उन प्ररूपणाओंकी स्पष्ट सूचना कर देनेका प्रयत्न किया गया है और मूलका सावधानीसे अनुसरण करते हुए भी वाक्यरचना यथाशक्ति मुहावरेके अनुसार और सरल रखी गई है।
___मूलमें जो आलाप आये है उनको और भी स्पष्ट करने तथा दृष्टिपातमात्रसे ज्ञेय बनानेके लिये प्रत्येक आलापका नकशा भी बनाकर उसी पृष्ठपर नीचे दे दिया गया है। इनमें संख्याएं अंकित करनेमें सावधानी तो पूरी रखी गई है, फिर भी संभव है दृष्टिदोषसे दो चार जगह एकाध अंक अशुद्ध छप गया हो । पर मूल और अनुवाद साम्हने होनेसे उनके कारण पाठकोंको कोई भ्रम न हो सकेगा । नकशोंका मिलान गोम्मटसारके प्रस्तुत प्रकरणसे भी कर लिया गया है।
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