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छक्खंडागमे जीवट्ठाणं
[१, १. 'अवगदवेदो वि अत्थि' त्ति वयणादो। चत्तारि कसाय, अकसाओ वि अस्थि, मणपजबणाणेण विणा सत्त णाण, परिहार-संजमेण विणा छ संजम, चत्तारि दंसण, दव-भावेहि छ लेस्साओ अलेस्सा वि अत्थि, भवसिद्धियाओ अभवसिद्धिया, छ सम्मत्तं, सणिणीओ णेव सण्णिणी णेव असण्णिणी वि अस्थि, आहारिणीओ अणाहारिणीओ, सागारुवजुत्ता होति अणागारुवजुत्ता वा सागार-अणागारेहि जुगवदुवजुत्ता वा ।
तासिं चेव पज्जत्ताणं भण्णमाणे अत्थि चोद्दस गुणहाणाणि, एओ जीवसमासो, छप्पजत्तीओ, दस पाण, चत्तारि सण्णाओ, खीणसण्णा वि अत्थि, मणुसगदी, पंचिंदियजादी, तसकाओ, एगारह जोग णव वा अजोगो वि अत्थि, इथिवेद अवगदवेदो वि अस्थि, चत्तारि कसाय अकसाओ वि अत्थि, सत्त णाण, छ संजम, चत्तारि देसण,
प्रयोजन होता तो अपगतवेदरूप स्थान नहीं बन सकता था, क्योंकि, द्रव्यवेद चौदहवें गुणस्थानके अन्ततक होता है। परन्तु 'अपगतवेद भी होता है। इस प्रकारका वचन निर्देश नौवें गुणस्थानके अवेदभागसे किया गया है, जिससे प्रतीत होता है कि यहां भाववेदसे ही प्रयोजन है, द्रव्यवेदसे नहीं। वेद आलापके आगे चारों कषाय, तथा अकषाय-स्थान भी होता है। मनःपर्ययज्ञानके विना सात ज्ञान, परिहारविशुद्धिसंयमके विना छह संयम, चारों दर्शन, द्रव्य और भावसे छहों लेश्याएं, तथा अलेश्यारूप भी स्थान होता है। भव्यसिद्धिक, अभव्यसिद्धिका छहों सम्यक्त्व. संझिनी तथा संशिनी और असंशिनी इन दोनों विकल्पोंसे रहित भी स्थान होता है । आहारिणी, अनाहारिणी; साकारोपयोगिनी, अनाकारोपयोगिनी; तथा साकार और अनाकार उपयोगसे युगपत् उपयुक्त भी होती हैं।
___उन्हीं मनुष्यनियोंके पर्याप्तकालसंबन्धी आलाप कहने पर-चौदहों गुणस्थान, एक संझी-पर्याप्त जीवसमास, छहों पर्याप्तियां, दशों प्राण, चारों संज्ञाएं, तथा क्षीणसंज्ञा-स्थान भी है। मनुष्यगति, पंचेन्द्रियजाति, त्रसकाय, वैक्रियिककाययोग, वैक्रियिकमिश्रकाययोग, आहारककाययोग और आहारकमिश्रकाययोग इन चार योगोंके विना ग्यारह योग, अथवा, उपर्युक्त चार और औदारिकमिश्रकाययोग तथा कार्मणकाययोग इन छह योगोंके विना नौ योग तथा अयोग स्थान भी होता है। स्त्रीवेद तथा अपगतवेद स्थान भी होता है। चारों कषाय, तथा अकषाय स्थान भी होता है। मनःपर्ययज्ञानके विना सात ज्ञान, परिहारविशुद्धिसंयमके
नं.११४
मनुष्यनी स्त्रियोंके सामान्य आलाप. | गु. जी. प. प्रा. सं. | ग.| इं.का. यो. वे. क. ना. | संय. द. | ले. भ. स.'संक्षि. आ.! उ. । १४ २६१०
१ ११ १/४ | ७ ६४ द्र.६ | २६१२२ सं.प. प.
म.४ स्त्री. मनः. परिहा. भा.६ म. सं. आहा. साका. सं.अ.६
व, ४ . विना. विना. अले. अ. अनु. अना. अना, औ.२
यु.उ.
क्षीणसं...
पचे. . त्रस..
अकषा. अपग.
का.
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