Book Title: Shatkhandagama Pustak 02
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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५५०] छक्खंडागमे जीवट्ठाणं
[१, १. भवणवासिय-वाणवेंतर-जोइसियदेव-असंजदसम्माइट्ठीणं भण्णमाणे अत्थि एवं गुणट्ठाणं, एओ जीवसमासो, छ पजत्तीओ, दस पाण, चत्तारि सण्णाओ, देवगदी, पंचिंदियजादी, तसकाओ, णव जोग, दो वेद, चत्तारि कसाय, तिणि णाण, असंजमो, तिण्णि दसण, दव्वेण छ लेस्सा, भावेण जहणिया तेउलेस्सा; भवसिद्धिया, खइयसम्मत्तेण विणा दो सम्मत्तं, सण्णिणो, आहारिणो, सागारुवजुत्ता होंति अणागारुवजुत्ता वा।
एसो इत्थि-पुरिसवेदाणमोघालावो समत्तो। एवं चेव पुरिसवेदस्स वत्तव्वं । णवरि जत्थ दो वेदा ठविदा तत्थ पुरिसवेदो एक्को चेव ठवेदव्यो । एवं चेव इत्थिवेदणिरुंभणं काऊण वत्तव्यं । णवरि जत्थ दो वेदा ठविदा तत्थ इत्थिवेदो चेव ठवेदव्यो।
असंयतसम्यग्दृष्टि भवनवासी, वानव्यन्तर और ज्योतिष्क देवोंके आलाप कहने परएक आवरतसम्यग्दृष्टि गुणस्थान, एक संज्ञी-पर्याप्त जीवसमास, छहों पर्याप्तियां, दशों प्राण, चारों संज्ञाएं, देवगति, पंचेन्द्रियजाति, त्रसकाय, चारों मनोयोग, चारों वचनयोग और वैक्रियिककाययोग ये नौ योग; नपुंसकवेदके विना दो वेद, चारों कषाय, आदिके तीन ज्ञान, असंयम, आदिके तीन दर्शन, द्रव्यसे छहों लेश्याएं, भावसे जघन्य तेजोलेश्या; भव्यसिद्धिक, क्षायिकसम्यक्त्वके विना दो सम्यक्त्व, संक्षिक, आहारक, साकारोपयोगी और अनाकारोपयोगी होते हैं।
इसप्रकार भवनत्रिक स्त्रीवेदी और पुरुषवेदियोंके संयुक्त सामान्य आलाप समाप्त हुए। इसीप्रकार भवनत्रिक देवोंमें पुरुषवेदके आलाप कहना चाहिये। विशेषता केवल यह है कि ऊपर जहां भवनत्रिक देवोंके सामान्य आलापमें दो वेद स्थापित किये गये है, वहां एक पुरुषवेद ही स्थापित करना चाहिये । इसीप्रकार भवनत्रिक देवोंमें स्त्रीवेदका आश्रय करके आलाप कहना चाहिये। विशेष बात यह है कि पहले जहां सामान्य आलापमें दो वेद स्थापित किये गये हैं, वहां एक स्त्रीवेद ही स्थापित करना चाहिये।
विशेषार्थ-ऊपर जो भवनत्रिक देवोंके आलाप कह आये है, वे सामान्यालाप हैं। उनमें पुरुषवेद और स्त्रीवेदका भेद नहीं किया गया है। परंतु उन्हीं आलापोंमें दो वेदके नं. १६३
भवनात्रिक असंयतसम्यग्दृष्टि देवोंके आलाप. गु.जी. प. प्रा. सं. ग. ई. का. यो. । वे. क. |झा. संय. द. ले. म. स. | संहि. आ. | उ. । १२६ १०/४/१२/१९ २४ । ३ | १ ३ द्र. ६१ २११२
म. ४ स्त्री. मति असं. के. द. भा. भ. औप. सं. आहा. साका.
श्रुत. विना. तेज. क्षायो, अव.
..
अवि. -
S
प.
अना.
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