Book Title: Shatkhandagama Pustak 02
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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५८२] छक्खंडागमे जीवट्ठाणं
[१, १. एवं चरिंदियाणं पज्जत्त-णामकम्मोदयाणं तिणि आलावा वत्तव्या । चउरिदियाणमपज्जत्त-णामकम्मोदयाणं एओ आलावो वत्तव्यो।
पंचिंदियाणं भण्णमाणे अत्थि चौदस गुणहाणाणि, चत्तारि जीवसमासा, छ पज्जत्तीओ छ अपजत्तीओ पंच पज्जत्तीओ पंच अपज्जत्तीओ, दस पाण सत्त पाण णव पाण सत्त पाण चत्तारि पाण दो पाण एय पाण, चत्तारि सण्णाओ खीणसण्णा वि अत्थि, चत्तारि गदीओ, पंचिंदियजादी, तसकाओ, पण्णारह जोग अजोगो वि अत्थि, तिण्णि वेद अवगदवेदो वि अत्थि, चत्तारि कसाय अकसाओ वि अत्थि, अट्ठ णाण, सत्त संजम, चत्तारि देसण, दव्वे-भावेहि छ लेस्साओ अलेस्सा वि अत्थि, भवसिद्धिया अभवसिद्धिया, छ सम्मत्तं, सणिणो असण्णिणो णेव सणिणो णेव असण्णिणो वि
इसीप्रकारसे पर्याप्त नामकर्मके उदयवाले पर्याप्तक चतुरिन्द्रिय जीवोंके सामान्य, पर्याप्त और अपर्याप्त ये तीन आलाप कहना चाहिए । अपर्याप्त नामकर्मके उदयवाले लम्ध्यपर्याप्तक चतुरिन्द्रिय जीवों के एक अपर्याप्त आलाप कहना चाहिए।
पंचेन्द्रिय जीवोंके सामान्य आलाप कहने पर-चौदहों गुणस्थान, संक्षी-पर्याप्त, संझी. अपर्याप्त, असंही-पर्याप्त और असंझी-अपर्याप्त ये चार जीवसमास, संशी-पर्याप्त जीवोंके छहों पर्याप्तियां, संज्ञी-अपर्याप्त जीवोंके छहों अपर्याप्तियां; असंक्षी-पर्याप्त पंचेन्द्रिय जीवोंके मनःपर्याप्तिके विना पांच पर्याप्तियां, असंज्ञी-अपर्याप्त पंचेन्द्रिय जीवोंके पांच अपर्याप्तियां: संझी-पर्याप्त पंचेन्द्रिय जीवोंके दशों प्राण, संझी-अपर्याप्त पंचेन्द्रिय जीवोंके अपर्याप्तकालभावी सात प्राण, असंज्ञी-पर्याप्त पंचेन्द्रिय जीवोंके मनोबलके विना नौ प्राण, असंझी-अपर्याप्त पंचेन्द्रिय जीवोंके अपर्याप्तकालभावी सात प्राण, सयोगिकेवली जिनके वचनबल, कायबल, आयु और श्वासोच्छ्वास ये चार प्राण, केवलिसमुद्धातकी अपर्याप्त अवस्थामें आयु और कायबल ये दो प्राण, और अयोगिकेवली भगवान के एक आयु प्राण होता है। चारों संज्ञाएं तथा क्षीणसंज्ञास्थान भी है, चारों गतियां, पंचेन्द्रियजाति, त्रसकाय, पंद्रहों योग तथा अयोगस्थान भी है। तीनों वेद तथा अपगतवेदस्थान भी है। चारों कषाय तथा अकषायस्थान भी है। आठों शान, सातों संयम, चारों दर्शन, द्रव्य और भावसे छहों लेश्याएं तथा अलेश्यास्थान भी है। भव्यसिद्धिक, अभव्यसिद्धिक, छहों सम्यक्त्व, संझिक,
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नं. २०१
पंचेन्द्रिय जीवोंके सामान्य आलाप. | गु.! जी. प. प्रा. सं. ग. ई. का. यो.। वे. क. झा. | संय. द. ले. भ. सं. संज्ञि. आ. | 3. 1 १४४ ६५.१०,७४ | सं.प.६ अ. ९,७
| सं. आहा. साका. सं. अ.५५.४.२
अलेश्य.अ.
असं. अना.
अना. असं.प.५अ. १
यु.उ. असं.अ./
क्षीणसं. </
पंचे.
अयोग.
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अकषा.
अनु.
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