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१, १.]
संत-परूवणाणुयोगद्दारे गदि-आलाववण्णणं वइजयंत-जयंत-अवराइद-सबट्टसिद्धि त्ति एदेसिं णव-पंच-अणुदिसाणुत्तराणं भण्णमाणे अस्थि एवं गुणहाणं दो जीवसमासा, छ पज्जत्तीओ छ अपजत्तीओ, दस पाण सत्त पाण, चत्तारि सण्णाओ, देवगदी, पंचिंदियजादी, तसकाओ, एगारह जोग, पुरिसवेद, चत्तारि कसाय, तिण्णि णाण, असंजम, तिण्णि दसण, दव्वेण काउ-सुक्क-उक्कस्ससुक्कलेस्साओ, भावेण उक्कस्सिया सुकलेस्सा, भवसिद्धिया, तिणि सम्मत्तं, सणिणो, आहारिणो अणाहारिणो, सागारुखजुत्ता होंति अणागारुखजुत्ता वा।
तेसिं चेव पज्जत्ताणं भण्णमाणे अत्थि एयं गुणट्ठाणं, एओ जीवसमासो, छ पजत्तीओ, दस पाण, चत्तारि सण्णाओ, देवगदी, पंचिंदियजादी, तसकाओ, गव जोग, पुरिसवेद, चत्तारि कसाय, तिण्णि णाण, असंजम, तिणि दंसण, दव्व-भावेहि उक्क
नौ अनुदिश विमानोंके तथा विजय, वैजयन्त, जयन्त, अपराजित और सर्वार्थसिद्धि इन पांच अनुत्तर विमानोंके आलाप कहने पर-एक अविरतसम्यग्दृष्टि गुणस्थान, संक्षी-पर्याप्त और संज्ञी-अपर्याप्त ये दो जीवसमास, छहों पर्याप्तियां, छहों अपर्याप्तियां; दशौ प्राण, सात प्राण; चारों संज्ञाएं, देवगति, पंचेन्द्रियजाति, त्रसकाय, चारों मनोयोग, चारों वचनयोग, क्रियिककाययोग, वैक्रियिकमिश्रकाययोग और कार्मणकाययोग ये ग्यारह योग; पुरुषवेद, चारों कषाय, आदिके तीन ज्ञान, असंयम, आदिके तीन दर्शन, द्रव्यसे अपर्याप्तकालमें कापोत और शुक्ल लेश्याएं तथा पर्याप्तकालमें उत्कृष्ट शुक्ललेश्या, भावसे उत्कृष्ट शुक्ललेश्या, भव्यसिद्धिक, औपशमिक, क्षायिक और क्षायोपशमिक ये तीन सम्यक्त्व; संक्षिक, आहारक, अनाहारक; साकारोपयोगी और अनाकारोपयोगी होते हैं।
उन्हीं नौ अनुविश और पांच अनुत्तर विमानवासी देवोंके पर्याप्तकालसंबन्धी आलाप कहनेपर-एक अविरतसम्यग्दृष्टि गुणस्थान, एक संशी-पर्याप्त जीवसमास, छहों पर्याप्तियां, दशों प्राण, चारों संज्ञाएं, देवगति, पंचेन्द्रियजाति, त्रसकाय, चारों मनोयोग, चारों ववनयोग, और वैक्रियिककाययोग ये नौ योगा पुरुषवेद, चारों कषाय, आदिके तीन शान, असंयम, आदिके तीन दर्शन, द्रव्य और भावसे उत्कृष्ट शुक्ललेश्या, भव्यसिद्धिक, औपशमिक
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नं. १८० नव अनुदिश और पांच अनुत्तर विमानवासी देवोंके सामान्य आलाप. | गु | जी. प. प्रा. सं. ग. | ई. । का.। यो. के. क. ज्ञा. । संय. द. ले. म. सं. सवि. आ.| उ. | १| २ |६/१०४| १ | १ | १ | ११ | १|४| ३ | १ ३ द्र.३/१३ ।१ २ ।२
सं.प.प. ७ दे. पंचे. त्रस. म. ४ पु. मति असं. के.द. का. शु. भ. औप. सं. आहा. साका. सं.अ.६
व ४ श्रुत. विना. शु. उ. क्षा. अना. अना. वै.२ अत्र.
मा.
१ क्षायो, कार्म.१
शु.उ.
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