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५६२] छक्खंडागमे जौवट्ठाणं
[१, १. तेसिं चेव पजत्ताणं भण्णमाणे अत्थि चत्तारि गुणट्ठाणाणि, एओ जीवसमासो, छ पज्जत्तीओ, दस पाण, वत्तारि सण्णाओ, देवगदी, पंचिंदियजादी, तसकाओ, णव जोग, पुरिसवेद, चत्तारि कसाय, छण्णाण, असंजम, तिणि दंसण, दव्य-भावेहि उक्कस्सतेउ-जहण्णपम्मलेस्साओ, भवसिद्धिया अभवसिद्धिया, छ सम्मत्तं, सणिणो, आहारिणो, सागारुवजुत्ता होंति अणागारुखजुत्ता वा।।
तेसिं चेव अपज्जत्ताणं भण्णमाणे अत्थि तिणि गुणट्ठाणाणि, एओ जीवसमासो, छ अपज्जत्तीओ, सत्त पाण, चत्तारि सण्णाओ, देवगदी, पंचिंदियजादी, तसकाओ, दो जोग, पुरिस वेद, चत्तारि कसाय, पंच णाण, असंजमो, तिणि दंसण, दव्वेण काउसुक्कलेस्सा, भावेण उक्कस्सतेउ-जहण्णपम्मलेस्साओ; भवसिद्धिया अभवसिद्धिया, पंच
उन्हीं सानत्कुमार माहेन्द्र देवोंके पर्याप्तकालसंबन्धी आलाप कहने पर-आदिके चार गुणस्थान, एक संज्ञी-पर्याप्त जीवसमास, छहों पर्याप्तियां, दशों प्राण, चारों संज्ञाएं, देवगति, पंचेन्द्रियजाति, उसकाय, चारों मनोयोग, चारों वचनयोग और वैक्रियिककाययोग ये नौ योग, पुरुषवेद, चारों कषाय, तीनों अज्ञान और आदिके तीन ज्ञान ये छह ज्ञान, असंयम, आदिके तीन दर्शन, द्रव्य और भावसे उत्कृष्ट तेजोलेश्या और जघन्य पद्मलेश्या; भव्यसिद्धिक, अभव्यसिद्धिक; छहों सम्यक्त्व, संज्ञिक, आहारक, साकारोपयोगी और अनाकारोपयोगी होते हैं।
__उन्हीं सानत्कुमार माहेन्द्र देवोंके अपर्याप्तकालसंबन्धी आलाप कहने पर-मिथ्यादृष्टि, सासादनसम्यग्दृष्टि और अविरतसम्यग्दृष्टि ये तीन गुणस्थान, एक संज्ञी-अपर्याप्त जीवसमास, छहों अपर्याप्तियां, सात प्राण, चारों संज्ञाएं, देवगति, पंचेन्द्रियजाति, त्रसकाय, वैक्रियिकमिश्रकाययोग और कार्मणकाययोग ये दो योग, पुरुषवेद, चारों कषाय, कुमति और कुश्रुत ये दो अज्ञान तथा आदिके तीन ज्ञान ये पांच ज्ञान, असंयम, आदिके तीन दर्शन, द्रव्यसे कापोत और शुक्ल लेश्याएं, भावसे उत्कृष्ट तेज और जघन्य पद्म लेश्याएं; भव्यसिद्धिक, अभव्यसिद्धिक, सम्यग्मिथ्यात्वके विना पांच सम्यक्त्व, संक्षिक, आहारक, अना
नं. १७८
सानत्कुमार माहेन्द्र देवोंके पर्याप्त आलाप. 1 गु./जी. प. प्रा. सं. ग. ई. का.) यो. वे. क.) ज्ञा. | संय.। द. | ले. म. स. संशि. आ. | उ. । ११ ६ १० ४|११|१ ९ २४६ १ ३ द्र,रते.उ.|२|६| ११ | २ मि. सं.प. प.
म. ४ पु. ज्ञान.३ असं. के. द.प. ज. भ. सं. आहा. साका.
अज्ञा.३ विनाः भा. २ अ.
पंचे त्रस.
अना.
ते. उ.
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