________________
१, १. ]
संत-परूवणाणुयोगद्वारे गदि -आळाववण्णणं
[ ५१५
दव्व-भावेहिं छ लेस्सा अलेस्सा वि अस्थि, भवसिद्धियाओ अभवसिद्धिया, छ सम्मतं, सणिणीओ व सणणी व असण्णिणी, आहारिणी, अणाहारिणी, सागारुवजुत्ता होंति अणागारुवजुत्ता वा सागार - अणागारेहि जुगवदुवजुत्ता वा" ।
तासिं चैव अपत्ताणं भण्णमाणे अत्थि तिष्णि गुणट्ठाणाणि, एओ जीवसमासो, छ अपजत्तीओ, सस पाण, चत्तारि सण्णाओ खीणसण्णा वि अत्थि, मणुसगदी, पंचिंदियजादी, तसकाओ, दो जोग, इत्थवेदो अवगदवेदो वि अस्थि, चत्तारि कसाय अकसाओ वा, दो अण्णा केवलणाणेण तिण्णि णाण, असंजमो जहाक्खादेण दोणि संजम
विना छह संयम, चारों दर्शन, द्रव्य और भावसे छहों लेश्याएं तथा अलेश्या स्थान भी होता है । भव्यसिद्धिक, अभव्यसिद्धिका छहों सम्यक्त्व, संज्ञिनी, तथा संज्ञिनी और असंक्षिनी विकल्पसे रहित भी स्थान होता है । आहारिणी, अनाहारिणी; साकारोपयोगिनी, अनाकारोपयोपयोगिनी तथा साकार अनाकार इन दोनों उपयोगोंसे युगपत् उपयुक्त भी होती है ।
विशेषार्थ - पर्याप्त सामान्य मनुष्योंके तेरह अथवा दश योगों के होनेका स्पष्टीकरण ऊपर कर आये हैं, उसीप्रकार पर्याप्त मनुष्यनियोंके ग्यारह अथवा नौ योगोंके संबन्धमें भी जान लेना चाहिये । यहां इतनी विशेषता है कि स्त्रीवेदियोंके आहारक ऋद्धि नहीं होती है, अतएव इनके आहार और आहारमिश्र ये दो योग नहीं पाये जाते हैं । इसप्रकार स्त्रीवेदियोंके पर्याप्त अवस्था में ग्यारह अथवा नौ योग ही होते हैं ।
उन्हीं मनुष्यनियों के अपर्याप्तकालसंबन्धी आलाप कहने पर - मिथ्यादृष्टि, सासादनसम्यग्दृष्टि और सयोगकेवली ये तीन गुणस्थान, एक संज्ञी अपर्याप्त जीवसमास, छहों अपर्याप्तियां, सात प्राण, चारों संज्ञाएं तथा क्षीणसंज्ञा स्थान भी है । मनुष्यगति, पंचेन्द्रियजाति,
काय, औदारिकमिश्रकाययोग और कार्मणकाययोग ये दो योग, स्त्रीवेद, तथा अपगतवेदस्थान भी है । चारों कषाय तथा अकषाय स्थान भी है । कुमति और कुश्रुत ये दो अज्ञान तथा सयोगकेवली गुणस्थानकी अपेक्षा केवल ज्ञान, इसप्रकार तीन ज्ञान, असं. यम और यथाख्यातविहारशुद्धि ये दो संयम, चक्षु, अचक्षु और केवल ये तीन दर्शन,
नं. ११५
गु. जी. प. प्रा. सं. ग. इं. का. यो. १४ १ सं. प.
Jain Education International
मनुष्यनी स्त्रियों के पर्याप्त आलाप.
क्षीणसं.
६ १०४ १ १ १ ११ १ ४
म.पं. त्र. पूर्वोक्त. स्त्री
९ म.४
वे. क ज्ञा. संय. ] द. ले. भ. स. संज्ञि. ६ ४ द्र. ६ २ | ६ भा. ६ भ. अले. अ.
मनः, परि. विना विना.
व. ४
ओ. १ अयो.
अकषा.
For Private & Personal Use Only
आ. उ.
१
२
२
सं. आहा.
साका. अना.
अनु. अना.
यु. उ.
www.jainelibrary.org