Book Title: Shatkhandagama Pustak 02
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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१, १.] संत-परूवणाणुयोगदारे आलाववण्णणं
[४१९ दसण्हं पाणाणमभावो अदीदपाणो णाम । अत्थि चत्तारि सण्णा, खीणसण्णा वि अत्थि । काओ चत्तारि सण्णाओ इदि चे ? वुच्चदे-आहारसण्णा भयसण्णा मेहुणसण्णा परिग्गहसण्णा चेदि । एदासिं चउण्हं सण्णाणं अभावो खीणसण्णा णाम । अत्थि चत्तारि गदीओ, सिद्धगदी वि अत्थि । एइंदियादी पंच जादीओ, अदीदजादी वि अस्थि । अत्थि पुढविकायादी छक्काया, अदीदकाओ वि अत्थि । अत्थि पण्णरह जोगा, अजोगो वि अस्थि । अस्थि तिणि वेदा, अवगदवेदो वि अत्थि । अस्थि चत्तारि कसाया, अकसाओ वि अस्थि । अत्थि अट्ट णाणाणि । अत्थि सत्त संजमा, णेव संजमो णेव संजमासंजमो णेव असंजमो वि अत्थि । अत्थि चत्तारि दंसणाणि । दव्वभावेहि छ लेस्साओ, अलेस्सा वि अत्थि । भवसिद्धिया वि अत्थि, अभवसिद्धिया वि अत्थि, णेव भवसिद्धिया णेव अभवसिद्धिया वि अत्थि । छ सम्मत्ताणि अस्थि । सण्णिणो वि अत्थि, असणिणो वि अत्थि, णेव सणिणो णेव असणिणो वि अस्थि । आहारिणो
किन्तु अन्तिम अर्थात् एकेन्द्रिय जीवोंके दो प्राण कम होते हैं। यह क्रम पर्याप्तकोंका है। किन्तु अपर्याप्तक जीवोंमें संज्ञी और असंज्ञी पंचेन्द्रियोंके सात, सात प्राण होते हैं। तथा शेष जीवोंके उत्तरोत्तर एक एक कम प्राण होते हैं ॥ २२१ ॥
विशेषार्थ केवली भगवान के पांच इन्द्रियां और मनोबलको छोड़कर शेष चार प्राण होते हैं। तथा योग निरोधके समय वचनबलका अभाव हो जाने पर कायबल आनापान और आयु ये तीन प्राण होते हैं और अन्तमें कायबल और आयु ये दो प्राण होते हैं। तथा चौदहवें गुणस्थानमें केवल एक आयुप्राण होता है।
___ इन दो प्राणोंके अभावको अतीत-प्राण कहते हैं। चारों संज्ञाएं होती हैं और क्षीणसंज्ञा भी होती है।
शंका-वे चार संज्ञाएं कौनसी हैं ? समाधान-...-आहारसंज्ञा, भयसंज्ञा, मैथुनसंज्ञा और परिग्रहसंज्ञा ये चार संशाएं हैं। इन चारों संज्ञाओंके अभावको क्षीणसंज्ञा कहते हैं।
चार गतियां होती हैं और सिद्धगति भी है। एकेन्द्रियादि पांच जातियां होती हैं और अतीत-जातिरूप स्थान भी है। प्रथिवीकाय आदि छह काय होते हैं और अतीतकाय स्थान भी है। पन्द्रह योग होते हैं और अयोग स्थान भी है। तीन वेद होते हैं और अपगतवेद स्थान भी है। चार कषायें होती हैं और अकषाय स्थान भी है । आठ ज्ञान होते हैं। सात संयम होते हैं और संयम, संयमासंयम और असंयम रहित भी स्थान है। चार दर्शन होते हैं। द्रव्य और भावके भेदसे छह लेश्याएं होती हैं और अलेश्यास्थान भी है । भव्यसिद्धिक जीव होते हैं, अभव्यसिद्धिक जीव होते हैं और भव्यसिद्धिक तथा अभव्यसिद्धिक इन दोनों विकल्पोंसे रहित भी स्थान होता है। छह सम्यक्त्व होते हैं। संज्ञी भी होते हैं, असंज्ञी भी होते हैं और संत्री तथा, असंही
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