Book Title: Shatkhandagama Pustak 02
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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१, १.] संत-परूवणाणुयोगद्दारे आलाववण्णणं
[११७ भावो अदीद-पजत्ती णाम । उत्तं च
आहार-सरीरिंदिय-पज्जत्ती आणपाण-भास-मणो। चत्तारि पंच छव्वि य एइंदिय-विगल-सण्णीण ॥२१८॥ जह पुण्णापुण्णाई गिह-घड-वत्थाइयाइ दव्वाइं ।
तह पुण्णापुण्णाओ पज्जत्तियरा मुणेयव्वा ॥ २१९ ॥ आत्थि दस पाण सत्त पाण णव पाण सत्त पाण अ पाण छप्पाण सत्त पाण पंच पाण छप्पाण चत्तारि पाण चत्तारि पाण तिण्णि पाण चत्तारि पाण दोणि पाण एक पाण अदीद-पाणो वि अत्थि । चक्खु-सोद-घाण-जिब्भ-फासमिदि पंचिंदियाणि, मणबल वचिबल कायबल इदि तिण्णि बला, आणापाणो आऊ चेदि एदे दस पाणा । उत्तं च
पंच वि इंदिय-पाणा मण-वचि-कारण तिण्णि बलपाणा । आणप्पाणप्पाणा आउगपाणेण होंति दस पाणा ॥ २२० ॥
कहते हैं । कहा भी है
आहार, शरीर, इन्द्रिय, आनापान, भाषा और मन ये छह पर्याप्तियां हैं। उनमेंसे एकेन्द्रिय जीवोंके चार, विकलत्रय और असंझी-पंचेन्द्रियोंके पांच और संक्षी जीवोंके छह पर्याप्तियां होती हैं ॥ २१८ ॥
जिसप्रकार गृह, घट और वस्त्र आदि द्रव्य पूर्ण और अपूर्ण दोनों प्रकारके होते हैं, उसीप्रकार जीव भी पूर्ण और अपूर्ण दो प्रकारके होते हैं उनमेंसे पूर्ण जीव पर्याप्तक और अपूर्ण जीव अपर्याप्तक कहलाते हैं ॥ २१९ ॥
दश प्राण, सात प्राण; नौ प्राण, सात प्राण; आठ प्राण, छह प्राण; सात प्राण, पांच प्राणः छह प्राण, चार प्राणः चार प्राण. तीन प्राणः चार प्राण, दो प्राण और एक प्राण होते हैं तथा अतीतप्राणस्थान भी है। चक्षुरिन्द्रिय, श्रोत्रेन्द्रिय, घ्राणेन्द्रिय, जिह्वेन्द्रिय और स्पर्शनोन्द्रिय ये पांच इन्द्रियां मनोबल, वचनबल, कायबल ये तीन बल, श्वासोच्छास और आयु ये दश प्राण होते हैं । कहा भी है
__पांचों इन्द्रियां, मनोबल, वचनबल और कायबल श्वासोच्छास और आयु ये दश प्राण हैं ॥ २२०॥
१ गो. जी. ११९. २ गो. जी. ११८. ३ गो. जी. ३०.
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