Book Title: Shatkhandagama Pustak 02
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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४२० छक्खंडागमे जीवाणं
[ १, १, वि अत्थि, अणाहारिणो वि अस्थि । सागारुखजुत्ता वि अत्थि, अणागारुवजुत्ता वि अस्थि, सागार-अणागारेहि जुगवदुवजुत्ता वि अस्थि ।
पञ्जन-विसिट्टे आधे भण्णमाणे अत्थि चोद्दस गुणट्ठाणाणि, अदीदगुणट्ठाणं णस्थि; पज्जत्तेसु तस्स संभवाभावादा। सन नीवसमासा, अदीदजीवसमासो पत्थि; छ पज्जत्तीओ पंच पज्जत्तीओ चत्तारि पञ्जीयो, अदीदपज्जत्ती णत्थिः दस पाण णव पाण अट्ठ पाण सत्त पाण छप्पाण चनारि पाण, अदीदपाणी णत्थिः चत्तारि सण्णा, वीणसणा वि अत्थिः चत्तारि गदीओ, सिद्धगदी णत्थिः एइंदियादी पंच जादीओ अस्थि, अददिजादी पत्थिः पुढवीकायादी छकाया अत्थि, अकाओ णत्थि; ओरालियवेउब्धिय-आहारमिस्स-कम्मइयकायजोगेहि विणा एकारह जोग, अजोगो वि अत्थि; तिणि वेद, अबगदवेदो वि अत्थिः चत्तारि कसाय, अकसाओ वि अत्थि; अट्ठ णाण, सत्त संजम, णेव संजमो णेव असंजमो णेव संजमासंजमो णत्थि; चत्तारि सण, दव्य-भावेहि
विकल्प रहित भी स्थान होता है । आहारक भी होते हैं और अनाहारक भी होते हैं। साकार उपयोगसे युक्त भी होते हैं अनाकार उपयोगसे भी युक्त होते हैं और साकार उपयोग तथा अनाकार उपयोग इन दोनोंसे युगपत् युक्त भी होते हैं।
___ पर्याप्त अवस्थासे युक्त जीवोंके ओघालाप कहने पर--चौदहों गुणस्थान होते हैं। अतीत-गुणस्थानरूप स्थान नहीं होता है, क्योंकि, पर्याप्तकोंमें अतीत-गुणस्थान अर्थात् सिद्ध अवस्थाको संभावना नहीं है। पर्याप्तसंबन्धी सातों जीवसमास होते हैं, किन्तु अतीत जीवसमास (सिद्ध अवस्था) रूप स्थान नहीं है। संशी जीवोंके छहों पर्याप्तियां, असंक्षी और विकलत्रयांके पांच पर्याप्तियां और एकेन्द्रिय जीवोंके चार पर्याप्तियां होती हैं, किंतु अतीतपर्याप्तिरूप स्थान नहीं होता है। संशोके दशों प्राण, असंहीके नौ प्राण, चतुरिन्द्रियके आठ प्राण, त्रीन्द्रियके सात प्राण, द्वीन्द्रियके छह प्राण, और एकेन्द्रियके चार प्राण होते हैं, किंतु अतीत-प्राणरूप स्थान नहीं हैं। चारों संज्ञाएं होती हैं और क्षीणसंज्ञारूप स्थान भी होता है। चारों गतियां होती हैं, किंतु सिद्धगति नहीं होती है। एकेन्द्रियादि पांचों जातियां होती हैं, किंतु अतीत-जातिरूप स्थान नहीं होता है। पृथिवीकाय आदि छहों काय होते हैं, किंतु अकाय. रूप स्थान नहीं होता है। औदारिकमिश्रकाययोग, वैक्रियकमिथकाययोग, आहारकमिश्रकाययोग और कार्मणकाययोगके विना ग्यारह योग होते हैं और अयोग-स्थान भी होता है। तीनों वेद होते हैं और अपगतवेद-स्थान भी होता है। चारों कषायें होती हैं और अकषाय-स्थान भी होता है। आठों ज्ञान होते हैं। सातों संयम होते हैं किंतु संयम, संयमासंयम और असंयम इन तीनोंसे रहित स्थान नहीं होता है। चारों दर्शन होते हैं। द्रव्य और भावके भेदसे छहों लेश्याएं होती
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