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५०० ] छक्खंडागमे जीवट्ठाणं
[१, १. पंचिंदिय-तिरिक्ख-जोणिणी-संजदासंजदाणं भण्णमाणे अस्थि एवं गुणहाणं, एओ जीवसमासो, छ पजत्तीओ, दस पाण, चत्तारि सण्णाओ, तिरिक्खगदी, पंचिंदियजादी, तसकाओ, णव जोग, इथिवेद, चत्तारि कसाय, तिणि णाण, संजमासंजमो, तिण्णि दंसण, दव्वेण छ लेस्साओ, भावेण तेउ-पम्म-सुक्कलेस्साओ, भवसिद्धियाओ, खइयसम्मत्तेण विणा दो सम्मत्तं, सण्णिणीओ, आहारिणीओ, सागारुवजुत्ताओ वा होति अणागारुखजुत्ताओ वा ।
__ पंचिंदिय-तिरिक्ख-लद्धि-अपज्जत्ताणं भण्णमाणे अत्थि एयं गुणहाणं, वे जीवसमासा, छ अपज्जत्तीओ पंच अपजत्तीओ, सत्त पाण सत्त पाण, चत्तारि सण्णाओ, तिरिक्खगदी, पंचिंदियजादी, तसकाओ, वे जोग, णqसयवेद, चत्तारि कसाय, दो अण्णाण, असंजमो, दो दंसण, दव्वेण काउ-सुक्कलेस्साओ, भावेण किण्ह-णील-काउ
पंचेन्द्रिय-तिर्यंच संयतासंयत योनिमतियोंके आलाप कहने पर-एक देशविरत गुणस्थान, एक संशी-पर्याप्त जीवसमास, छहों पर्याप्तियां, दशों प्राण, चारों संज्ञाएं, तिर्यंचगति, पंचेन्द्रियजाति, त्रसकाय, चारों मनोयोग, चारों वचनयोग और औदारिककाययोग ये नौ योग; स्त्रीवेद, चारों कषाय, आदिके तीन ज्ञान, संयमासंयम, आदिके तीन दर्शन, द्रव्यसे छहों लेश्याएं, भावसे तेज, पद्म और शुक्ल लेश्याएं; भव्यसिद्धिक, क्षायिकसम्यक्त्वके विना दो सम्यक्त्व, संशिनी, आहारिणी, साकारोपयोगिनी और अनाकारोपयोगिनी होती हैं।
पंचेन्द्रिय-तिर्यंच लब्ध्यपर्याप्तकोंके आलाप कहने पर-एक मिथ्यादृष्टि गुणस्थान, संक्षी-अपर्याप्त और असंज्ञी-अपर्याप्त ये दो जीवसमास, संजीके छहों अपर्याप्तियां, असंशीके पांच अपर्याप्तियां, संशी-अपर्याप्तके सात प्राण, असंही-अपर्याप्तके सात प्राण, चारों संज्ञाएं, तिर्यंचगति, पंचेन्द्रियजाति, त्रसकाय, औदारिकमिश्रकाययोग और कार्मणकाययोग ये दो योग,
चारों कषाय, कुमात और कुश्रुत ये दो अज्ञान, असंयम, चक्षु और अचक्षु ये दो दर्शन, द्रव्यसे कापोत और शुक्ल लेश्याएं, भावसे कृष्ण, नील, और कापोत लेश्याएं; भव्य
नं. ९८
पंचेन्द्रिय तिर्यंच योनिमती संयतासंयतोंके आलाप. | गु. जी. प. प्रा. सं. ग. इं. का. यो. वे. क. ज्ञा. । संय. द. ले. भ. स. ।संज्ञि. आ. उ. । १|१|६|१०४ १११ ९ १४ ३१३ द्र.६ १२ ११ । २ । सं.
ति. ... म. ४ स्त्री. .. म.४ खा.
मति. देश. के. द. भा.३ भ. औप. सं. आहा. साका. विना. शुभ. क्षायो.
अना. औ.१
अव.
देश..
श्रुत.
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