________________
१, १.] संत-परूवणाणुयोगद्दारे गदि-आलाववण्णणं
[५०७ मणुस्स-सासणसम्माइट्ठीणं भण्णमाणे अत्थि एवं गुणहाणं, दो जीवसमासा, छ पज्जत्तीओ छ अपजत्तीओ, दस पाण सत्त पाण, चत्तारि सण्णाओ, मणुसगदी, पंचिंदियजादी, तसकाओ, एगारह जोग, तिणि वेद, चत्तारि कसाय, तिण्णि अण्णाण, असंजमो, दो देसण, दव्य-भावेहि छ लेस्प्ताओ, भवसिद्धिया, सासणसम्मत्तं, सण्णिणो, आहारिणो अणाहारिणो, सागारुवजुत्ता होंति अणागारुवजुत्ता वा।
तेसिं चेव पज्जत्ताणं भण्णमाणे अत्थि एयं गुणट्ठाणं, एओ जीवसमासो, छ पजत्तीओ, दस पाण, चत्तारि सण्णाओ, मणुसगदी, पंचिंदियजादी, तसकाओ, णव जोग, तिणि वेद, चत्तारि कसाय, तिण्णि अण्णाण, असंजमो, दो दसण, दव्व-भावेहि छ लेस्साओ, भवसिद्धिया, सासणसम्मत्तं, सणिणो, आहारिणो, सागारुवजुत्ता होंति
सासादनसम्यग्दृष्टि सामान्य मनुष्योंके आलाप कहने पर-एक सासादन गुणस्थान, संशी-पर्याप्त और संज्ञी अपर्याप्त ये दो जीवसमास, छहों पर्याप्तियां, छहों अपर्याप्तियां दशों प्राण, सात प्राण; चारों संज्ञाएं, मनुष्यगति, पंचेद्रियजाति, त्रसकाय, चारों मनोयोग, चारों वचनयोग, औदारिककाययोग, औदारिकमिश्रकाययोग और कार्मणकाययोग ये ग्यारह योग; तीनों वेद, चारों कषाय, तीनों अज्ञान, असंयम, चक्षु और अचक्षु ये दो दर्शन, द्रव्य और भावसे छहों लेश्याएं, भव्यसिद्धिक, सासादनसम्यक्त्व, संज्ञिक, आहारक, अनाहारक; साकारोपयोगी और अनाकारोपयोगी होते हैं।
उन्हीं सासादनसम्यग्दृष्टि सामान्य मनुष्योंके पर्याप्तकालसंवन्धी आलाप कहने परएक सासादन गुणस्थान, एक संज्ञी-पर्याप्त जीवसमास, छहों पर्याप्तियां, दशों प्राण, चारों संशाएं, मनुष्यगति, पंचेन्द्रियजाति, त्रसकाय, चारों मनोयोग, चारों वचनयोग और औदारिककाययोग ये नौ योगः तीनों वेद, चारों कषाय, तीनों अज्ञान, असंयम, चक्षु और अचक्षु ये दो दर्शन, द्रव्य और भावसे छहों लेश्याएं, भव्यसिद्धिक, सासादनसम्यक्त्व, संज्ञिक, आहारक,
.....
नं. १०६ सामान्य मनुष्य सासादनसम्यग्दृष्टियोंके सामान्य आलाप. | गु. जी. प. प्रा.। सं. ग.| इं. का. यो. । वे. क. ना. संय. द. | ले. भ. स. सनि. आ. | उ..
१ २ ६५. 10४|१|| | ११ | ३ ४ ३ | १ २ द्र. ६ १ १ १ २ । २ सा. सं. प. ६अ. ७ म...
___ अज्ञा. असं. चक्षु. भा. ६ भ. सं. आहा. साका.
अना. अना.
सासा. NA
" अ.
अच.
का.१
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org