Book Title: Shatkhandagama Pustak 02
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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छक्खंडागमे जीवठ्ठाणं
[१, १. बादरा दुविहा पज्जत्ता अपज्जत्ता । मुहुमा दुविहा पजत्ता अपजत्ता । वीइंदिया दुविहा पञ्जत्ता अपज्जत्ता । तीइंदिया दुविहा पज्जत्ता अपज्जत्ता । चउरिदिया दुविहा पज्जत्ता अपज्जत्ता। पंचिंदिया दुविहा सणिणो असण्णिणो । सणिणो दुविहा पज्जत्ता अपज्जत्ता। असण्णिणो दुविहा पज्जत्ता अपज्जत्ता इदि । एदे चोद्दस जीवसमासा अदीदजीवसमासा वि अस्थि । अत्थि छ पज्जत्तीओ छ अपज्जत्तीओ पंच पज्जत्तीओ पंच अपज्जत्तीओ चत्तारि पज्जत्तीओ चत्तारि अपज्जत्तीओ अदीद-पज्जत्ती वि अस्थि । आहारपज्जत्ती सरीरपज्जत्ती इंदियपज्जत्ती आणापाणपज्जत्ती भासापज्जत्ती मणपज्जत्ती चेदि । एदाओ छ पज्जत्तीओ सण्णिपज्जत्ताणं । एदेसिं चेव अपज्जत्तकाले एदाओ चेव असमत्ताओ छ अपज्जत्तीओ भवंति । मणपज्जत्तीए विणा एदाओ चेव पंच पज्जत्तीओ असण्णि-पंचिंदिय-पज्जत्तप्पहुडि जाव बीइंदिय-पज्जत्ताणं भवंति । तेसिं चेव अपज्जत्ताणं एदाओ चेव अणिप्पण्णाओ पंच अपज्जत्तीओ वुच्चंति । एदाओ चेव भासा-मणपज्जत्तीहि विणा चत्तारि पज्जत्तीओ एइंदिय-पज्जत्ताणं भवंति । एदेसिं चेव अपज्जत्तकाले एदाओ चेव असंपुण्णाओ चत्तारि अपज्जत्तीओ भवंति । एदासिं छण्हम
समाधान- एकेन्द्रिय जीव दो प्रकारके हैं , बादर और सूक्ष्म । बादर जीव दो प्रकारके हैं, पर्याप्त और अपर्याप्त । सूक्ष्म जीव दो प्रकारके हैं, पर्याप्त और अपर्याप्त । द्वीन्द्रिय जीव दो प्रकारके हैं, पर्याप्त और अपर्याप्त । त्रीन्द्रिय जीव दो प्रकारके हैं, पर्याप्त और अपर्याप्त । चतुरिन्द्रिय जीव दो प्रकारके हैं, पर्याप्त और अपर्याप्त । पंचेन्द्रिय जीव दो प्रकारके हैं , संज्ञी और असंशी । संक्षी जीव दो प्रकारके हैं, पर्याप्त और अपर्याप्त । असंशी जीव दो प्रकारके हैं, पर्याप्त और अपर्याप्त'। इसप्रकार ये चौदह जीवसमास होते हैं।
अतीत-जीवसमास भी जीव होते हैं। छहों पर्याप्तियां, छहों अपर्याप्तियां; पांच पर्याप्तियां, पांच अपर्याप्तियां; चार पर्याप्तियां और चार अपर्याप्तियां हैं। तथा अतीतपर्याप्ति भी है। आहारपर्याप्ति, शरीरपर्याप्ति, इन्द्रियपर्याप्ति, आना
पर्याप्ति. भाषापर्याप्ति और मनःपर्याप्ति ये छह पर्याप्तियां हैं। ये छहों पर्याप्तियां संझी-पर्याप्तके होती हैं। इन्हीं संशी जीवोंके अपर्याप्त-कालमें पूर्णताको प्राप्त नहीं हुई ये ही छह अपर्याप्तियां होती हैं। मनःपर्याप्तिके विना उक्त पांचों ही पर्याप्तियां असंझी-पंचेन्द्रिय-पर्याप्तोंसे लेकर द्वीन्द्रिय-पर्याप्तक जीवोतक होती हैं। अपर्याप्तक अवस्थाको प्राप्त उन्हीं जीवोंके अपूर्णताको प्राप्त वे ही पांच अपर्याप्तियां होती हैं। भाषापर्याप्ति और मनःपर्याप्तिके विना ये ही चार पर्याप्तियां एकेन्द्रिय पर्याप्तोंके होती हैं। इन्हीं पकेन्द्रिय जीवोंके अपर्याप्तकालमें अपूर्णताको प्राप्त ये ही चार अपर्याप्तियां होती हैं । तथा इन छह पर्याप्तियोंके अभावको अतीतपर्याप्ति
१ जी. सं. सू. ३४-३५.
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