Book Title: Shatkhandagama Pustak 02
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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४१२] छक्खंडागमे जीवट्ठाणं
[ १, १. सेसाणं परूवणाणमत्थो वुत्तो । पाण-सण्णा-उवजोग-परूवणाणमत्थो बुच्चदे । प्राणिति जीवति एभिरिति प्राणाः । के ते ? पञ्चेन्द्रियाणि मनोबलं वाग्बलं कायवलं उच्छासनिःश्वासौ आयुरिति । नैतेषामिन्द्रियाणामेकेन्द्रियादिष्वन्तर्भावः; चक्षुरादिक्षयोपशमनिबन्धनानामिन्द्रियाणामेकेन्द्रियादिजातिमिः साम्याभावात्। नेन्द्रियपर्याप्तावन्तर्भावा; चक्षुरिन्द्रियाद्यावरणक्षयोपशमलक्षणेन्द्रियाणां क्षयोपशमापेक्षया बाह्यार्थग्रहणशक्त्युत्पत्तिनिमित्तपुद्गलप्रचयस्य चैकत्वविरोधात्। न च मनोबलं मनःपर्याप्तावन्तर्भवति मनोवर्गणास्कन्धनिष्पन्नपुद्गलप्रचयस्य तस्मादुत्पन्नात्मबलस्य चैकत्वविरोधात् । नापि वाग्बलं भाषापर्याप्तावन्तर्भवति; आहारवर्गणास्कन्धनिष्पन्नपुद्गलप्रचयस्य तस्मादुत्पन्नायाः भाषावर्गणास्कन्धानां श्रोत्रद्रियग्राह्यपर्यायेण परिणमनशक्तेश्च साम्याभावात् । नापि कायबलं शरीरपर्याप्तावन्तर्भवति वीर्यान्तरायजनितक्षयोपशमस्य खलरसभागनिमित्तशक्तिनिबन्धनपुद्गलप्रचयस्य चैकत्वाभावात् । तथोच्छासनिश्वासप्राणपर्याप्त्योः कार्यकारणयोरात्मपुद्गलोपादा
वीस प्ररूपणाओं से तीन प्ररूपणाओंको छोड़कर शेष प्ररूपणाओंका अर्थ पहले कह आये हैं, अतः यहां पर प्राण, संज्ञा, और उपयोग इन तीन प्ररूपणाओंका अर्थ कहते हैं। जिनके द्वारा जीव जीता है उन्हें प्राण कहते हैं।
शंका-वे प्राण कौनसे हैं ?
समाधान-पांच इन्द्रियां, मनोबल, वचनबल, कायबल, उच्छास-निश्वास और आयु ये दश प्राण हैं।
इन पांचों इन्द्रियोंका एकेन्द्रियजाति आदि पांच जातियों में अन्तर्भाव नहीं होता है; क्योंकि, चक्षुरिन्द्रियावरण आदि कर्मों के क्षयोपशमके निमित्तसे उत्पन्न हुई इन्द्रियोंकी एके. न्द्रियजाति आदि जातियोंके साथ समानता नहीं पाई जाती है । उसीप्रकार उक्त पांचों इन्द्रियोंका इन्द्रियपर्याप्तिमें भी अन्तर्भाव नहीं होता है, क्योंकि, चक्षुरिन्द्रिय आदिको आवरण करनेवाले कर्मों के क्षयोपशमस्वरूप इन्द्रियोंको और क्षयोपशमकी अपेक्षा बाह्य पदार्थों को ग्रहण करनेकी शक्तिके उत्पन्न करने में निमित्तभूत पुद्गलोंके प्रचयको एक मान लेनेमें विरोध आता है। उसीप्रकार मनोबलका मनःपर्याप्तिमें भी अन्तर्भाव नहीं होता है, क्योंकि, मनोवर्गणाके स्कन्धोंसे उत्पन्न हुए पुद्गलप्रचयको और उससे उत्पन्न हुए आत्मबल (मनोबल ) को एक मानने में विरोध आता है । तथा वचनबल भी भाषापर्याप्तिमें अन्तर्भूत नहीं होता है, क्योंकि, आहारवर्गणाके स्कन्धोंसे उत्पन्न हुए पुद्गलप्रचयका और उससे उत्पन्न हुई भाषावर्गणाके स्कन्धोंका श्रोत्रेन्द्रियके द्वारा ग्रहण करने योग्य पर्यायसे परिणमन करनेरूप शक्तिका परस्पर समानताका अभाव है। तथा कायबलका भी शरीरपयाप्तिमें अन्तर्भाव नहीं होता है, क्योंकि, वीर्यान्तरायके उदयाभाव और उपशमसे उत्पन्न हुए क्षयोपशमकी और खल-रसभागकी निमित्तभूत शक्तिके कारण पुद्गलप्रचयकी एकता नहीं पाई जाती है । इसीप्रकार उच्छासनिःश्वास प्राण कार्य है और आत्मोपादानकारणक है तथा उच्छासनिःश्वासपर्याप्ति कारण है और पुद्गलोपा
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