Book Title: Shatkhandagama Pustak 02
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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बारहवें श्रुताङ्ग दृष्टिवादका परिचय प्रकट होने और दूसरी जगह उनके बीच एकसौ तीस वर्षका अन्तर पड़नेका क्या कारण हो सकता है ? पट्टावलियोंमें भी कहीं उनके नाम देने और कहीं छोड़ दिये जानेका भी कारण क्या है ?
४. जिस कम्मपयडीमें नागहत्थीने प्रधानता प्राप्त की थी क्या वह पुष्पदन्त भूतबलि द्वारा उद्धारित कम्मपयडिपाहुड हो सकता है !
५. दिगम्बर और श्वेताम्बर पट्टावलियों आदिमें उक्त आचार्योंके कालनिर्देशमें वैषम्य पड़नेका कारण क्या है ?
इन प्रश्नोंमेंसे अनेकके उत्तर पूर्वोक्त विवेचनमें सूचित या ध्वनित पाये जावेंगे, फिर भी उन सबका प्रामाणिकतासे उत्तर देना विना और भी विशेष खोज और विचारके संभव नहीं है। इस कार्यके लिये जितने समयकी आवश्यकता है उसकी भी अभी गुंजाइश नहीं है । अतः यहां इतना ही कहकर यह प्रसंग छोड़ा जाता है कि उक्त आचार्यों संबंधी दोनों परम्पराओंके उल्लेखोंका भारी रहस्य अवश्य है, जिसके उद्घाटनसे दोनों सम्प्रदायोंके प्राचीन इतिहास और उनके बीच साहित्यिक आदान प्रदानके विषय पर विशेष प्रकाश पड़नेकी आशा की जा सकती है।
इस प्रकरणको समाप्त करनेसे पूर्व यहां यह भी प्रकट कर देना उचित प्रतीत होता है कि श्वेताम्बर आगमके अन्तर्गत भगवतीसूत्रमें जो पंच-नमोकार-मंगल पाया जाता है उसमें पंचम पद अर्थात् ' णमो लोए सव्वसाहूणं ' के स्थानपर ' णमो बंभीए लिवीए' ( ब्राह्मी लिपिको नमस्कार ) ऐसा पद दिया गया है। उड़ीसाकी हाथीगुफामें जो कलिंग नरेश खारवेलका शिलालेख पाया जाता है और जिसका समय ईस्वी पूर्व अनुमान किया जाता है, उसमें आदि मंगल इसप्रकार पाया जाता है
णमो अरहंताणं । णमो सव सिधाणं ।
ये पाठभेद प्रासंगिक हैं या किसी परिपाटीको लिये हुए हैं, यह विषय विचारणीय है। श्वेताम्बर सम्प्रदायमें किसी किसीके मतसे णमोकार सूत्र अनार्ष है ।
५ बारहवें श्रुताङ्ग दृष्टिवादका परिचय हम सत्प्ररूपणा प्रथम जिल्दकी भूमिकामें कह आये हैं कि बारहवां श्रुतांग दृष्टिवाद श्वेताम्बर मान्यताके अनुसार भी विच्छिन्न होगया, तथा दिगम्बर मान्यतानुसार उसके कुछ अंशोंका
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x • ये तु वदन्ति नमस्कारपाठ एव नार्ष ... ... ... ... ' इत्यादि । देखो अभिधानराजेन्द्र-णमोकार, पृ. १८३५.
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