Book Title: Shatkhandagama Pustak 02
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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षट्खंडागमकी प्रस्तावना
६ बंधण - जं तं बंधणं तं चउग्विंह-बंधो बंधगा बंधणिज्जं बंधविधाणमिदि । तत्थ बंधो जीवकम्मपदेसाणं सादियमणादियं च बंधं वदि । बंधगाहियारो अट्ठविहकम्मबंधगे परुवेदि, सोच खुदाबंधे परुविदो | बंधणिज्जं बंधपाओग्ग-तदपाओग्ग-पोग्गलदवं परुवेदि । बंधविहाणं पयडिबंधं ठिदिबंधं अणुभागबंधं पदेसबंधं च परुवेदि ।
७ निबंध - णिबंधणं मूलुत्तरपयडीणं निबंधणं वदि । जहा चक्खिदियं रूवम्मि निबद्धं, सोदिदियं सद्दम्मि णिवद्धं, घाणिदियं गंधम्मि णिबद्धं, निब्भिंदियं रसम्मि णिबद्धं, फासिंदियं कक्खदादिफासेसु णिबद्धं, तहा इमाओ पयडीओ एदेसु अत्थेसु निबद्धाओ णिबंधणं परुवेदि, एसो भावत्थो ।
८ पकम - पक्कमेत्ति अणियोगद्दारं अकग्मसरूवेण द्विदाणं कम्मइयवग्गणाखंधाणं मूलत्तरपयडिसरूवेण परिणममाणाणं पयडि-हिदिअणुभागविसेसेण विसिद्वाणं पदेसपरूवणं
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का निरूपण प्रकृतिनिक्षेप आदि सोलह अधिकारोंके द्वारा किया गया है ।
६ बन्धन - बन्ध, बन्धक, बन्धनीय और बन्धविधान, इसप्रकार बन्धन अर्थाधिकार के चार भेद हैं । उनमें से बन्ध अधिकार जीव और कर्मप्रदेशों का सादि और अनादिरूप बन्धका वर्णन करता है । बन्धक अधिकार आठ प्रकारके कर्मों के बन्धकका प्रतिपादन करता है जिसका कथन क्षुल्लकबन्ध में किया जा चुका 1 बन्धके योग्य पुद्गलद्रव्यका कथन बन्धनीय अधिकार करता है । बन्धविधान अधिकार प्रकृतिबन्ध, स्थितिबन्ध, अनुभागबन्ध और प्रदेशबन्ध इन चार बन्धके भेदों का कथन करता है ।
७ निबन्धन - निबन्धन अधिकार मूलप्रकृति और उत्तर प्रकृतियोंके निबन्धनका कथन करता है । जैसे, चक्षुरिन्द्रिय रूपमें निबद्ध है । श्रोत्रेन्द्रिय शब्दमें निबद्ध है । घ्राणेन्द्रिय गन्धमें निबद्ध है । जिह्वा इन्द्रिय रसमें निबद्ध है और स्पर्शनेन्द्रिय कर्कश आदि स्पर्शमें निबद्ध है । उसीप्रकार ये मूलप्रकृतियां और उत्तरप्रकृतियां इन विषयोंमें निबद्ध हैं, इसप्रकार निबन्धन अर्थाधिकार प्ररूपण करता है यह भावार्थ जानना चाहिये ।
८ प्रक्रम - प्रक्रम अर्थाधिकार जो वर्गणास्कन्ध अभी कर्मरूपसे स्थित नहीं हैं, किंतु जो मूलप्रकृति और उत्तरप्रकृतिरूपसे परिणमन करनेवाले हैं और जो प्रकृति, स्थिति और
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