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प्रकाशित है। धर्मामृतशास्त्र जो कि जिनेन्द्र भगवानकी वाणीरूपीरससे युक्त है और टीकासे सुन्दर है, बनाकर मोक्षकी इच्छा करनेवाले विद्वानों के हृदयमें अतिशय आनन्द उत्पन्न किया । आयुर्वेदके विद्वानोंकी प्यारी वाग्भट्टसंहिताकी 'अष्टांगहृदयोद्योतिनी नामकी टीका बनाई, मूल आराधना और मूल २इष्टोपदेश ( पूज्यपादकृत ) आदिकी टीकाएँ बनाई और अमरकोषपर क्रियाकलाप नामकी टीका बनाई । इसमें जो आदि शब्द दिया है, उससे आराधनासार, भूपालचतुर्विंशतिका आदिकी टीकाएँ समझनी चाहिये । अर्थात् इन ग्रन्थोंकी टीकाएँ भी पंडितवर्यने बनाई।
ये संब ग्रन्थ विक्रम संवत् १२८५ के पहलेके बने हुए: हैं । जिनयज्ञकल्पकी प्रशस्तिमें इतने ही ग्रन्थोंका उल्लेख है। इनके पश्चात् सं० १२९६ तक अर्थात् सागारधर्मामृतकी टीका बनानेके समय तक निम्नलिखित ग्रन्थोंकी रचना और भी हुई:
रोद्रटस्य व्यधात् काव्यालङ्कारस्य निबन्धनम् सहस्रनामस्तवनं.सनिबन्धं च योऽर्हताम् ॥ १४ ॥
१ इससे जान पड़ता है कि आशाधर वैद्यविद्याके भी बड़े भारी पंडित थे।
२. पूज्यापादका मूल इष्टोपदेश बम्बईके मन्दिरमें है । इसकी भाषाटीका भी किसी जयपुरी पंडितकी बनाई हुई है।