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| सुदी ५ सोमवार सं ० १३०० को पूर्ण हुई है । इसके पीछेका उनका कोई भी ग्रन्थ नहीं मिलता है । इस ग्रन्थ के बनानेके समय हमारे ख़याल में पंडितराजकी आयु ६५-७० वर्षके लगभग होगी । क्योंकि उनका जन्म वि० सं० १२३०-३५ के लगभग सिद्ध किया जा चुका है । इस ग्रन्थकी प्रशस्तिसे यह भी मालूम होता है कि वे उस समय नालछेमें ही थे । और शायद सं० १२६५ के पश्चात् उन्होंने कभी नालछा छोड़ा भी नहीं । क्योंकि उनके १२६५ और १३०० के मध्यके जो दो ग्रन्थ मिलते हैं, वे भी नालछेके बने हुए हैं । एक वि० सं० १२८५ का और दूसरा १२९६ का । नालछेमें कविवर जैनधर्मका उद्योत करनेकेलिये आये थे, फिर क्या प्रतिज्ञा पूरी किये बिना ही चले जाते ? अंत समय तक वे नालछेमें ही रहे और वहीं उन्होंने अपने अपूर्व ग्रन्थों की रचना करके जैनधर्मका मस्तक उंचा किया ।
वर्तमानमें पं० आशाधर के मुख्य तीन ग्रन्थ सुलभ हैं और प्रायः प्रत्येक भंडारमें मिल सकते हैं । एक जिनयज्ञकल्प, दूसरा सागरधर्मामृत और तीसरा अनगारधर्मांमृत । इन तीनों ही ग्रन्थोंमें वे अपनी विस्तृत प्रशस्ति लिखके रख गये हैं । वि० ० संवत् १३०० तक उन्होंने जितने ग्रन्थों की रचना की है, उन सबके नाम उक्त तीनों प्रशस्तियों में लिखे हम उन्हें यहां क्रमसे प्रकाशित करते हैं:
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