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(१५) हरसोदामें मिला है, जो वि. सं. १२७५का लिखा हुआ है। इससे मालूम पडता है कि १२७२ और १२७५के बीचमें किसी समय अर्जुनदेवके राज्यका अन्त हुआ था और १२६७ के पहले उनके राज्यका प्रारंभ हुआ था । कव प्रारंभ हुआ था, इसका निश्चय करनेके लिये विन्ध्यवर्मा और सुभटवर्मा इन दो राजाओंके राज्यकालके लेख मिलना चाहिये, जो अभीतक हमको प्राप्त नहीं हुए हैं । तो भी ऐसा अनुमान होता है कि १२६७के अधिकसे अधिक २-३ वर्ष पहले अर्जुनवर्माको राज्य मिलाहोगा। क्योंकि संवत् १२५०में जब आशाधर धारामें आये थे, तब भी विन्ध्यवर्माका राज्य था । और जब वे विद्वान् हो गये थे, तब भी विन्ध्यवर्माका राज्य था। क्योंकि मंत्री बिल्हणने आशाधरकी विद्वत्ताकी प्रशंसा की थी। यदि आशाधरके विद्याभ्यास कालके केवल ७-८ वर्ष गिन जावें, तो विन्ध्यवर्माका राज्य वि० सं० १२५७-५८ तक समझना चाहिये । विन्ध्यवर्माके पश्चात् सुभटवर्माके राज्यके कमसे कम ७ वर्ष माने जावें, तो अर्जुनदेवके राज्यारंभका समय वि० सं० १२६५ गिनना चाहिये । इसी १२६५ के लगभग आशाधर नालछेमें आये होंगे।
पंडितप्रवर आशाधरकी मृत्यु कब हुई इसके जाननेका कोई उपाय नहीं है । उनके बनाये हुए जो २ ग्रन्थ प्राप्य हैं, । उनमेंसे अनगारधर्मामृतकी भव्यकुमुदचन्द्रिका टीका कार्तिक