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इससे यह भी अनुमान होता है कि वे धारासे अकेले आये होंगे । गृहस्थाश्रम से उन्होंने एक प्रकारसे सम्बन्ध छोड़ दिया होगा ।
नलकच्छपुरको इस समय नालछा कहते हैं । यह स्थान धारसे १० कोसकी दूरीपर है । सुना है, इस समय वहांपर जैनियों के थोडेसे घर और जैनमंदिर हैं । परन्तु आशाधर के समय वहां पर जैनियोंकी बहुत बड़ी बस्ती थी। जैनधर्मका जोर शोर भी वहां बहुत होगा । ऐसी हुए विना आशाधर सरीखे विद्वान् धारा जैसी महानगरीको छोडकर वहां रहने को नहीं जाते । अवश्य ही वहांपर जैनधर्मकी उन्नति करनेके लिये धारासे अधिक साधन एकत्र होंगे ।
जिस समय पंडितवर्य आशाधर नालछा को गये, उस समय मालवा में महाराज अर्जुनवर्मदेवका राज्य था । अर्जुनवर्मदेव के अभीतक तीन दानपत्र प्राप्त हुए हैं, जिनमेंसे एक विक्रमसंवत् १२६७का है, जो पिप्पलिया नगर में है और मंडपदुर्गमें दिया गया था । 'दूसरा वि. सं. १२७०का भोपाल में है और भृगुकच्छ (भरोंच ) में दिया गया था और तीसरा १२७२का है, जो अमरेश्वर तीर्थमें दिया गया था और भोपाल में है । इसके पश्चात् अर्जुनदेव के पुत्र देवपाळदेव के राजत्वकालका एक शिलालेख
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१- अमोरकन् ओरियंटल सुसाइटीका जनरल भाग ७,
२ - अ० ओ० सुं० का जनरल भाग ७, पृष्ठ २५ ।
पृष्ठ ३२ ।