Book Title: Kasaypahudam Part 08
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे . [ बंधगो६ सम्मामिच्छत्त-सम्मत्ताणि खवेमाणस्स अंतोमुहुत्तकालं छावट्ठिअब्भंतरे पयदसंकमो ण लब्भइ तेणेत्थ पुव्वमुवसमसम्मत्तं घेत्तूण द्विदस्स अंतोमुहुत्तकालमाणेदूण विदे सादिरेयछावट्ठिसागरोवममेत्तो पयदसंकमस्स कालो लद्धो, ऊणकालादो अहियकालस्स संखेजगुणत्तुवलंभादो । कधमेदं परिच्छिञ्जदे ? सम्मामिच्छत्त-सम्मत्तक्खवणद्धादो उवसमसम्मत्तकालो बहुओ त्ति पुरदो भण्णमाणप्पाबहुआदो। तं जहा—'दसणमोहक्खवयस्स सयलअणियट्टिअद्धादो तस्सेव अपुव्वकरणद्धा संखेजगुणा, तत्तो अणंताणुबंधिविसंजोजयस्स अणियट्टिअद्धा संखेजगुणा, तस्सेव अपुवकरणद्धा संखेजगुणा, तदो दंसणमोहमुवसातयस्स अणियट्टिअद्धा संखेज्जगुणा, एदस्स चेय अपुव्वकरणद्धा संखेज्जगुणा, तेणेव अपुव्वकरणपढमसमयम्मि कदगुणसेढिणिक्खेवो विसेसाहिओ, तस्सुवरि उवसमसम्मत्तद्धा संखेज्जगुणा' त्ति ।
लिये उद्यत हुआ ऐसा जो जीव मिथ्यात्वकी क्षपणा करता हुआ उसका उदयावलिमें प्रवेश कराके सम्यग्मिथ्यात्व और सम्यक्त्वकी क्षपणा कर रहा है उसके छयासठ सागरमें एक अन्तर्मुहूर्त कालतक प्रकृत संक्रम नहीं प्राप्त होता, इसलिये वेदकसम्यक्त्वके प्राप्त होनेके पूर्वमें जो अन्तमुहूर्त उपशम सम्यक्त्वका काल है उसे लाकर इस वेदकसम्यक्त्वके कालमें मिलाने पर साधिक छयासठ सागर प्रमाण प्रकृत संक्रमका काल प्राप्त होता है, क्यों कि यहाँ पर छयासठ सागरमेंसे जितना काल घटाया गया है उससे उपशम सम्यक्त्वका जोड़ा गया काल संख्यातगुणा है ।
शंका—यह कैसे जाना जाता है ?
समाधान—सम्यग्मिथ्यात्व और सम्यक्त्वके क्षपणा कालसे उपशमसम्यक्त्वका काल बहुत है यह अल्पबहुत्व आगे कहनेवाले हैं, इससे जाना जाता है कि यहाँ जितना काल घटाया गया है उससे, जो उपशमसम्यक्त्वका काल जोड़ा गया है, वह संख्यातगुणा है। यथा-'दर्शनमोहनीयकी क्षपणा करनेवाले जीवके अनिवृत्तिकरणके पूरे कालसे उसीके अपूर्वकरणका काल संख्यातगुणा है । उससे अनन्तानुबन्धीकी विसंयोजना करनेवाले जीवके अनिवृत्तिकरणका काल संख्यातगुणा है। उससे इसी विसंयोजक जीवके अपूर्वकरणका काल संख्यातगुणा है। उससे दर्शन मोहनीयकी उपशमना करनेवाले जीवके अनिवृत्तिकरणका काल संख्यातगुणा है। उससे इसीके अपूर्वकरणका काल संख्यातगुणा है । उससे इसीके अपूर्वकरणके प्रथम समयमें की गई गुणश्रेणिका निक्षेप विशेष अधिक है । उससे उपशमसम्यक्त्वका काल संख्यातगुणा है।' इससे जाना जाता है कि वेदकसम्यक्त्यके उत्कृष्ट कालमेंसे जो काल कम किया गया है उससे वेदकसम्यक्त्वके प्राप्त होनेके पूर्व प्राप्त हुआ उपशमसम्यक्त्वका काल संख्यातगुणा है ।
विशेषार्थ-यहां मिथ्यात्वके संक्रमका जघन्य और उत्कृष्ट काल बतलाया है । यह तो पहले ही बतला आये हैं कि मिथ्यात्वका संक्रम सम्यग्दृष्टिके ही होता है, इसलिये सम्यक्त्वका जो सबसे जघन्य काल है वह यहां मिथ्यात्वके संक्रमका जघन्य काल जानना चाहिये । यतः सम्यक्त्वका जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त बतलाया है अतः मिथ्यात्वके संक्रमका जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त प्राप्त होता है । अब रही उत्कृष्ट कालकी बात सो यद्यपि सामान्यसे सम्यक्त्वका उत्कृष्ट काल साधिक चार पूर्वकोटि अधिक छयासठ सागर है। पर इसमें क्षायिकसम्यग्दर्शनका काल भी सम्मिलित है अतः इसे छोड़कर केवल वेदकसम्यक्त्वका कुछ कम उत्कृष्ट काल और उपशमसम्यक्त्व
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