Book Title: Kasaypahudam Part 08
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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गा० २६ ]
संकमट्ठाणाणं पडिग्गहवाणणिदेसो __ १२३ २८३. संपहि सत्तावीसादिसंकमट्ठाणाणि परिवाडीए द्वविय पादेकमेकेकसकमद्वाणणिरुंभणं काऊणेदस्स संकमट्ठाणस्स एत्तियाणि पडिग्गहट्ठाणाणि होति ति जाणावणमुवरिमदसगाहाओ। तत्थ ताव तासिमादिमगाहा छव्वीस सत्तावीसा य । एदीए तदियगाहाए छब्बीस सत्तावीससंकमट्ठाणाणं पडिग्गहट्ठाणणियमो कीरदेचदुसु चेव पडिग्गहट्ठाणेसु छब्बीस-सत्तावीसाणं संकमो णाणत्थ इदि । एत्थ णियमसद्दो
गुण | प्रति प्रकृतियां संक्रमस्थान प्रकृतियां उपशम | ५ प्र० | चार संज्व० व पुरुषवेद | २१ प्र० | १२ कषाय नौ नोकषाय श्रेणि २१
२० प्र० संज्वलो• बिना पूर्वोक्त प्रकृतिक सत्कर्मकी
१६ प्र० | नपुं०वेद बिना पूर्वोक्त अपेक्षा
| ४ प्र० | पुरुषवेदके बिना १८ प्र० | स्त्रीवेद बिना पूर्वोक्त ३ प्र. | संचलनक्रोधके बिना । ६प्र० | | सात नोकषा० दो क्रोध
के बिना | संज्वलनमानके बिना
६ प्र०
दो मानके बिना १ प्र० | माया संज्वलनके बिना | ३५० | दो मायाके बिना क्षपकवेणि | ५ प्र. चारसं० व पुरुषवेद | २१ प्र० | पूर्ववत्
१३ प्र० मध्यके आठकषाय बिना १२ प्र० संज्वलोभ बिना
११ प्र. नपुंसकवेद बिना ४ प्र चार संज्वलन
स्त्रीवेदके बिना ४प्र० । छह नोकषाय बिना
२ प्र०
१०प्र०
३ प्र० [संज्वलन क्रोध बिना । ३प्र० संज्व०क्रोध, मानव माया
२ प्र० संज्वलन मान बिना
।
२ प्र.
संज्व० मान व माया
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| संज्वलन माया बिना । १ प्र० | संज्वलन माया $ २८३. अब सत्ताईस आदि संक्रमस्थानोंको क्रमसेरखकर प्रत्येक संक्रमस्थानकी अपेक्षा इस संक्रमस्थानके इतने प्रतिग्रहस्थान होते हैं यह बतलानेके लिये आगेकी दस गाथाएं आई हैं। उनमेंसे 'छब्बीस सत्तवीसा य' यह पहली गाथा है जो क्रमानुसार तीसरे नम्बरपर प्राप्त होती है। इस तीसरी गाथामें छब्बीस प्रकृतिक और सत्ताईस प्रकृतिक संक्रमस्थानोंके प्रतिग्रहस्थानोंका नियम करते हैं-छब्बीस प्रकृतिक और सत्ताईस प्रकृतिक संक्रमस्थानोंका चार प्रतिग्रहस्थानोंमें ही संक्रम होता है अन्यत्र नहीं होता। इस गाथामें आया हुआ 'नियम' शब्द पंचमी विभक्ति का एकवचनान्त
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