Book Title: Kasaypahudam Part 08
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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गा० ५८ ]
उत्तरपट्टिदिवड्डमे तिणि अओिगद्दाराणि
* वडिसकमो विसेसाहिओ ।
९८६०. केत्तियमेत्तेण ? तोकोडा कोडिमेत्तेण ।
* धुं'सयवेद-अरह-सोग-भय- दुगुंद्वाणं सव्वत्थोवा उक्कस्सिया वड्डी अवहाणं च |
९८६१. कुदो ! एदेसिमुकस्सविडीए अवट्टाणस्स च पलिदोवमासंखेज्जभागव्भद्दियवीससागरोवमकोडाको डिपमा णत्तदंसणादो ।
* हाणिसंकमो विसेसाहिओ ।
९ ८६२. केत्तियमेत्तेण ? अंतोकोडा कोडिपरिहीणवीससागरो० कोडाको डिमेत्तेण । * एत्तो जहणणयं ।
९८६३. सुगमं ।
* सव्वासि पयडीं जहरिणया बड्डी हाणी अवद्वाणं द्विदिसंकमो तुल्लो ।
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८६४. कुदो ? सव्वपयडीणं जहण्णवड्डि-हाणि-अवट्ठाणाणमेयट्ठिदिपमाणत्तादो | आदेसेण सव्वमग्गणासु जहण्णुक्कस्सप्पाबहुअं ट्ठिदिविहतिभंगो ।
एवं पदणिक्खेवो समत्तो
* वड्डीए तिरिण अणियोगद्दाराणि ।
* उससे वृद्धिसंक्रम विशेष अधिक है ।
९८६०. कितना अधिक है ? अन्तःकोड़ाकोड़ीप्रमाण अधिक है । * नपुंसकवेद, अरति, शोक, भय और जुगुप्साकी उत्कृष्ट वृद्धि और अवस्थान सबसे स्तोक है ।
$ ८६१. क्योंकि इनकी उत्कृष्ट वृद्धि और अवस्थान पल्यका असंख्यातवाँ भाग अधिक are कोड़ाकोड़ी सागरप्रमाण देखा जाता है ।
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* उनसे हानिसंक्रम विशेष अधिक है ?
८६२. कितना अधिक है ? अन्तःकोड़ा कोड़ी हीन बीस कोड़ाकोड़ी सागरप्रमाण अधिक है । * आगे जघन्यका प्रकरण है ।
९८६३. यह सूत्र सुगम है ।
* सब प्रकृतियोंकी जघन्य वृद्धि, हानि और अवस्थान स्थितिसंक्रम तुल्य है ।
८६४. क्योंकि सब प्रकृतियोंकी जघन्य वृद्धि, हानि और अवस्थान एक स्थितिप्रमाण है आदेश से सब मार्गणाओं में जघन्य और उत्कृष्ट अल्पबहुत्वका भंग स्थितिविभक्तिके समान है । * वृद्धिका अधिकार है । उसमें तीन अनुयोगद्वार हैं ।
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