Book Title: Kasaypahudam Part 08
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh

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Page 439
________________ ४२६ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [बंधगो६ कालब्भंतरमिच्छाइट्ठिसंचयसहिदस्स पहाणत्तावलंबणादो। तदो असंखेज्जगुणा जादा । 8 सेसाणं कम्माणं सव्वत्थोवा अवत्तव्वसंकामया। $ ९१७. अणंताणुबंधीणं ताव पलिदोवमस्सासंखेजभागमेत्ता उकस्सेणेयसमयम्मि अवत्तव्वसंकम कुणंति । बारसकसाय-णवणोकसायाणं पुण संखेजा चेव उवसामया सव्वोवसामणादो परिवदिय अवत्तव्वसंकमं कुणमाणा लब्भंति त्ति सव्वत्थोवत्त मेदेसि जादं। * असंखेज गुणहाणिसंकामया संखेजगुणा । ९१८. अणंताणुबंधिविसंजोयणाए चरित्तमोहक्खवणाए च दूरावकिट्टिप्पहुडि संख जसहस्सट्ठिदिखंडयचरिमफालीसु वट्टमाण जीवाणमेयवियप्पपडिबद्धावत्तव्वसंकामएहितो तहाभावसिद्धीए णाइयत्तादो । 8 सेससंकामया मिच्छत्तभंगो। १९१९. सुगममेदमप्पणासुत्तं । एवमोधप्पाबहुअं समत्तं । ६९२०. एदस्सेव फुडीकरणट्ठमादेसपरूवणटुं च उच्चारणाणुगममेत्थ कस्सामो। तं जहा-अप्पाबहुआणुगमेण दुविहो णिदेसो-ओघेण आदेसेण य । ओघेण मिच्छ०अणंताणु० चउक्क० विहत्तिभंगो। बारसक०-णवणोक० अणंताणु० चउक्कभंगो। णवरि सञ्चयका दीर्घ उद्वलनकालके भीतर मिथ्यादृष्टि राशिके प्राप्त हुए सञ्चयके साथ प्रधानरूपसे अवलम्बन लिया गया है । इसलिए यह राशि असंख्यातगुणी हो जाती है । * शेष कर्मोके अवक्तव्यपदके संक्रामक जीव सबसे स्तोक हैं । ६६१७. उत्कृष्टरूपसे पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण जीव अनन्तानुबन्धियोंका एक समयमें अवक्तव्यसंक्रम करते हैं। परन्तु बारह कषाय और नौ नोकषायोंका संख्यात उपशामक जीव ही सर्वोपशामनासे गिर कर अवक्तव्यसंक्रम करते हुए उपलब्ध होते है, इसलिए इनका सबसे स्तोकपना बन जाता है। * उनसे असंख्यातगणहानिके संक्रामक जीव संख्यातगणे हैं। ६६१८. अनन्तानुबन्धियोंकी विसंयोजनामें और चात्रिमोहनीयकी क्षपणामें दूरापकृष्टिसे लेकर संख्यात हजार स्थितिकाण्डकोंकी अन्तिम फालियोंमें विद्यमान जीव एक विकल्पसे सम्बन्ध रखनेवाले अवक्तव्यसंक्रामकोंसे संख्यातगुणे सिद्ध होते हैं यह बात न्याय प्राप्त है। * उनसे शेष पदोंके संक्रामक जीवोंका भंग मिथ्यात्वके समान है । ६६१६. यह अर्पणसूत्र सुगम है । इस प्रकार ओघअल्पबहुत्व समाप्त हुआ। ६६२०. अब इसीको स्पष्ट करनेके लिए और आदेशका कथन करनेके लिए यहाँ पर उच्चारणाका अनुगम करते हैं। यथा-अल्पबहुत्वानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है-ओघ और आदेश। ओघसे मिथ्यात्व और अनन्तानुबन्धीचतुष्कका भंग स्थितिविभक्तिके समान है। बारह कषाय और नौ नोकषायोंका भंग अनन्तानुबन्धीचतुष्कके समान है। किन्तु इतनी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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