Book Title: Kasaypahudam Part 08
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
[ बंधगो ६ ९११. किं कारणं ? पुश्विल्लविसयादो एदेसि विसयस्स असंखेजगुणत्तोवलंभादो । तं कधं ? धुवट्ठिदीए णिरुद्धाए किंचूणतदद्धमेत्तो संखेजभागवडिविसयो होइ । एवं समयुत्तरादिधुवट्ठिदीणं पि पुध पुध णिरंभणं कादूण संखेजभागवड्ढि विसयो अणुगंतव्यो जाव अंतोमुहुत्तूणसत्तरि ति । एवं कादूण जोइदे हिदि पडि णिरुद्धहिदीए किंचूणद्धमत्ता चेव संखेजभागवड्डिवियप्पा लद्धा हवंति । एसो च सव्वो विसओ संपिंडिदो पुव्विल्लविसयादो असंखेजगुणो ति पत्थि संदेहो । तम्हा सिद्धमेदेसिमसंखेजगुणतं, अविप्पडिवत्तीए ।
ॐ संखेज्जगुणवडिसंकामया संखेज्जगुणा।
६ ९१२. कारणं दोण्हमेदेसि वेदगसम्मत्तं पडिवजमाणरासी पहाणो । किंतु संखेजभागवडि विसयादो वेदगसम्मत्तं पडिवजमाणजीवेहितो संखेजगुणवड्डिविसयादो वेदगसम्मत्तं पडिवजमाणजीवा संचयकालमाहप्पेण संखेजगुणा जादा। तं कधं ? मिच्छत्तं गंतूण थोवयरकालं चेव अच्छमाणो संखेजभागवड्डिपाओग्गो होइ। तत्तो बहुवयरं कालमच्छमाणो पुण णिच्छएण संखेजगुणवड्डिपाओग्गो होदि ति एदेण कारणेण सिद्धमेदेसिं संखेजगुणतं ।
® संखेज्जगुणहाणिसंकामया संखेज्जगुणा । ६६११. क्योंकि पूर्वके विषयसे इनका विषय असंख्यातगुणा उपलब्ध होता है। शंका-वह कैसे ?
समाधान-क्योंकि ध्रुवस्थिति विवक्षित होने पर कुछ कम उससे आधा संख्यातभागवृद्धिका विषय है। इसी प्रकार एक समय अधिक आदि ध्रुवस्थितियोंको भी पृथक्-पृथक विवक्षित करके अन्तर्मुहूर्त कम सत्तर कोड़ाकोड़ीसागरप्रमाण स्थितिके प्राप्त होने तक संख्यातभागवृद्धिका विषय ले आना चाहिए। इस प्रकार करके योगफल लाने पर प्रत्येक स्थितिके प्रति विवक्षित स्थितिके कुछ कम आधे संख्यातभागवृद्धि के विकल्प प्राप्त होते हैं। और इस सब विषयको मिलाने पर वह पूर्वके विषयसे असंख्यातगुणा है इसमें सन्देह नहीं। इसलिए विप्रतिपत्तिके बिना ये असंख्यातगुणे हैं यह सिद्ध होता है।
* उनसे संख्यातगुणवृद्धिके संक्रामक जीव संख्यातगुणे हैं।
६६१२. क्योंकि इन दोनोंमें वेदकसम्यक्त्वको प्राप्त होनेवाली राशि प्रधान है। किन्तु संख्यातभागवृद्धिके साथ वेदकसम्यक्त्वको प्राप्त होनेवाले जीवोंसे संख्यातगुणवृद्धिके साथ वेदकसम्यक्त्वको प्राप्त होनेवाले जीव संश्चयकालके माहात्म्यवश संख्यातगुणे हो जाते हैं।
शंका-वह कैसे ?
समाधान—क्योंकि मिथ्यात्वमें जाकर थोड़े काल तक रहनेवाला जीव ही संख्यातभागवृद्धिके योग्य होता है। परन्तु उससे बहुत काल तक रहनेवाला जीव नियमसे संख्यातगुणवृद्धिके योग्य होता है, इसलिए इस कारणसे ये जीव संख्यातगुणे होते हैं यह सिद्ध हुआ।
* उनसे संख्यातगुणहानिके संक्रामक जीव संख्यातगुणे हैं।
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