Book Title: Kasaypahudam Part 08
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh

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Page 438
________________ गा० ५८ ] उत्तरपडिट्ठिदिवड्डिसंकमे अप्पा बहु १९१३. कुदो ? तिण्णिवड्डि-अवट्ठाणेहिं गहियसम्मत्ताणमंतोमुहुत्तसंचिदाणं संगुणहाणीए पाओग्गत्तदंसणादो । * संखेज्जभागहाणिसंकामया संखेज्जगुणा । १९१४. कारणमेत्थ सुगमं, मिच्छत्तप्पाबहुअसुत्ते परुविदत्तादो | अधवा संखे० भागहाणी संखे ० ० गुणा । असंखे० ० गुणा त्ति पाढंतरं । एदस्साहिप्पायो सत्थाणे सं० गुणहाणिसंकामए हिंतो संखेज्जभागहाणि संकामया संखेज्जगुणा चैव । किंतु ण सि मेत्थ पहाणत्तं, अनंताणुबंधिं विसंजोएंतसम्माइट्ठिरा सिपहाणभावदंसणादो । सो च सम्माइद्विरासिपाहम्मेणासंखेजगुणो ति । एदं च पाढंतरमेत्थ पहाणभावेणावलंबेयव्वो । ४२५ * अवत्तव्वसंकामया असंखेज्जगुणा । १९१५. कुदो ? अद्धपोग्गलपरियहं संचयादो पडिणियत्तिय णिस्संतकम्मियभावेण सम्मत्तं पडिवज्जमाणाणमिह गहणादो । * असंखेज्जभागहाणिसंकामया असंखेज्जगुणा । ९१६. एत्थ कारणं वुच्चदे – पुव्विल्लासेससं कामया सम्मत - सम्मामिच्छत्तसंतकम्मियाणमसंखे० भागो चेव, सव्वेसिमेयसमयसंचिदत्तन्भुवगमादो । एदे वुण तेसिमसंखेज्जभागा, वेसागरोवमकाल अंतरे वेदयसम्माइट्ठिरासिसंचयस्स दोहुव्वेल्लण १६१३. क्योंकि तीन वृद्धि और अवस्थानपदके साथ सम्यक्त्वको ग्रहण करनेवाले तथा अन्तर्मुहूर्त कालके भीतर संचित हुए जीव संख्यातगुणहानिके योग्य देखे जाते हैं । * उनसे संख्यात भागहानिके संक्रामक जीव संख्यातगुणे हैं । $६१४. यहाँ कारण सुगम है, क्योंकि मिध्यात्वसम्बन्धी अल्पबहुत्व का कथन करनेवाले सूत्र में उसका कथन कर आये हैं । अथवा संख्यातभागहानिके संक्रामक जीव असंख्यातगुणे हैं यह पाठान्तर उपलब्ध होता है। इसका अभिप्राय यह है कि स्वस्थान में संख्यातगुणहानि के संक्रामक जीवोंसे संख्यात भागहानिके संक्रामक जीव सख्यातगुणे ही हैं । किन्तु उनकी यहाँ पर प्रधानता नहीं है, क्योंकि यहाँ पर अनन्तानुबन्धीकी विसंयोजना करनेवाली राशिकी प्रधानता देखी जाती है और वह सम्यग्दृष्टि राशिकी प्रधानतावश असंख्यातगुणी है । इस प्रकार पाठान्तरको यहाँ पर प्रधानरूपसे ग्रहण करना चाहिए । * उनसे अवक्तव्यपदके संक्रामक जीव असंख्यातगुणे हैं । १५. क्योंकि अर्धपुद्गल परिवर्तनकालके सञ्चयसे लौटकर सम्यग्मिथ्यात्व का अभाव कर सम्यक्त्वको प्राप्त होनेवाले जीवों का यहाँ ग्रहण किया है । ५४ Jain Education International * उनसे असंख्यात भागहानिके संक्रामक जीव असंख्यातगुणे हैं । $६१६. यहाँ पर कारणका कथन करते हैं- पहले सब संक्रामक जीव सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्व के सत्कर्मवाले जीवोंके असंख्यातवें भागप्रमाण ही हैं, क्योंकि उनका एक समय में होनेवाला सञ्चय स्वीकार किया गया है । परन्तु ये जीव सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्व के सत्कर्मवाले जीवोंके बहुभागप्रमाण हैं, क्योंकि दो सागर कालके भीतर वेदकसम्यग्दृष्टिराशिके प्राप्त हुए For Private & Personal Use Only सम्यक्त्व और www.jainelibrary.org

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