Book Title: Kasaypahudam Part 08
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh

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Page 435
________________ ४२२ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [बंधगो६ सुत्तादो । तदो संखेजगुणत्तमेदेसि ण विरुज्झदे । * असंखेज भागवडिसंकामया अणंतगुणा । १९०४. कुदो ? एइंदियरासिस्सासंखेजभागपमाणत्तादो। दुसमयाहियावहिदासंखेजभागहाणिकालसमासेणंतोमुहुत्तपमाणेणेइंदियरासिमोवट्टिय दुगुणिदे पयदवड्डिसंकामया होंति ति सिद्धमेदेसिमणंतगुणत्तं । * अवहिदसंकामया असंखेजगुणा । $ ९०५. कुदो ? एइंदियरासिस्स संखे०भागपमाणत्तादो । ® असंखेज भागहाणिसंकामया संखेज्जगुणा । ६०६. कुदो ? अवट्ठाणकालादो अप्पयरकालस्स संखेजगुणत्तादो ? 8 सम्मत्त-सम्मामिच्छत्ताणं सव्वत्थोवा असंखेज्जगुणहाणिसंकामया। ६९०७. कुदो ? दंसणमोहक्खवयसंखेजजीवे मोत्तूणण्णत्थं तदसंभवादो । * अवडिदसंकामया असंखेज्जगुणा । ९०८. कुदो ? पलिदोवमासंखेजभागपमाणत्तादो । ण चेदमासिद्धं, अवविदपाओग्गसमयुत्तरमिच्छत्तहिदिवियप्पेसु तेत्तियमेत्तजीवाणं संभवदंसणादो। इसलिए ये जीव संख्यातगुणे होते हैं यह बात विरोधको प्राप्त नहीं होती। * उनसे असंख्यातभागवृद्धिके संक्रामक जीव अनन्तगुणे हैं । ६६०४. क्योंकि ये जीव एकेन्द्रियराशिके असंख्यातवें भागप्रमाण हैं। दो समय अधिक अवस्थित और असंख्यातभागहानिके कालके जोड़रूप अन्तर्मुहूर्तंप्रमाणसे एकेन्द्रिय जीवराशिको भाजित कर जो लब्ध आवे उसे दूना करने पर प्रकृत वृद्धिके संक्रामक जीव होते हैं, इसलिए ये अनन्तगुणे हैं यह बात सिद्ध हुई । * उनसे अवस्थितपदके संक्रामक जीव असंख्यातगुणे हैं। $१०५. क्योंकि ये एकेन्द्रियराशिके संख्यातवें भागप्रमाण हैं। * उनसे असंख्यातभागहानिके संक्रामक जीव संख्यातगुणे हैं । ६६०६. क्योंकि अवस्थानकालसे अल्पतरकाल संख्यातगुणा है। * सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी असंख्यातगुणहानिके संक्रामक जीव सबसे थोड़े हैं। ६०७. क्योंकि दर्शनमोहनीयकी क्षपणा करनेवाले संख्यात जीवोंको छोड़कर अन्यत्र असंख्यातगुणहानिका होना असम्भव है। * उनसे अवस्थितपदके संक्रामक जीव असंख्यातगुणे हैं । ६०८. क्योंकि ये पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण हैं। और यह असिद्ध भी नहीं है, क्योंकि अवस्थित पदके योग्य मिथ्यात्वके एक समय अधिक स्थिति विकल्पोंमें तत्प्रमाण जीव सम्भव देखे जाते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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