Book Title: Kasaypahudam Part 08
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh

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Page 425
________________ ४१२ जयधवला सहिदे कसायपाहुडे [ बंधगः ६ विहत्तिभंगो | णवरि संखेजभागहाणी ० जह० उक्क० एयसमओ । सोलसक० - णवणोक विहत्तिभंगो | णवरि संखे ० भागहाणि - अवत्त० जह० उक्क० एयसमओ । तिण्णिसंजल पुरिसवेद० संखे० गुणवड्डी० जह० उक० एयसमओ । सम्म० - सम्मामि० विहत्तिभंगो । raft संखे ० भागहाणि अवत्त० जह० उक्क० एयसमओ । 10 ९ ८८४. आदेसेण णेरइय० मिच्छ० - बारसक० णवणोक० विहत्तिभंगो । सम्म०सम्मामि० विहत्तिभंगो | णवरि संखे० भागहाणी० जह० उक्क० एयसमओ | असंखे०गुणहाणी णत्थि । अताणु०४ विहत्तिभंगो । णवरि संखे० भागहा० जह० उक्क० एस० । एवं सव्वणेरइय० । वरिसी । ९८८५ तिरिक्खेसु मिच्छ० - बारसक० -- णवणोक० विहत्तिभंगो । सम्म०सम्मामि० विहत्तिभंगो । णवरि संखे ० भागहाणी० जह० उक्क० एयसमओ | असंखे ०गुणहाणी णत्थि । अनंताणु०४ विहत्तिभंगो । णवरि संखे ० भागहाणी० जह० उक्क० एयसमओ | पंचिं० तिरिक्खतिए ३ एवं चेव । णवरि मिच्छ० - सोलसक०-णवणोक० संखे० भागवड्डी० जह० उक्क० एयसमओ । पंचिं ०तिरिक्खअपज ० - मणुसअपज्ज० मिच्छ०सोलसक०-णवणोक० असंखे० भागवड्डी० जह० एगस०, उक्क० वे समया सत्तारस O मिथ्यात्वका भंग स्थितिविभक्तिके समान है । किन्तु इतनो विशेषता है कि ख्यसांतभागहानिका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है । सोलह कषाय और नौ नोकषायों का भंग स्थितिविभक्तिके समान है । किन्तु इतनी विशेषता है कि संख्यात भागहानि और अवक्तव्यका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है । तीन संज्वलन और पुरुषवेदकी असंख्यातगुणवृद्धिका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है । सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वका भंग स्थितिविभक्तिके समान है । किन्तु इतनी विशेषता है कि संख्यात भागहानिका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है । १८८४. आदेश से नारकियोंमें मिथ्यात्व, बारह कषाय और नौ नोकषायों का भंग स्थितिविभक्तिके समान है । सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वका भंग स्थितिविभक्तिके समान है । किन्तु इतनी विशेषता हैं कि संख्यातभागहानिका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है । असंख्यातगुणहानि नहीं है । अनन्तनुबन्धीचतुष्कका भंग स्थितिविभक्तिके समान है । किन्तु इतनी विशेषता है कि संख्यात्तभागहानिका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है । इसी प्रकार सब नारकियों में जानना चाहिए। किन्तु इतनी विशेषता है कि अपनी-अपनी स्थिति कहनी चाहिए । ८८५ तिर्यों में मिध्यात्व, बारह कषाय और नौ नोकषायोंका भंग स्थितिविभक्तिके समान है । सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वका भंग स्थितिविभक्तिके समान है । किन्तु इतनी विशेषता है कि संख्यातभागहानिका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है । असंख्यातगुणहानि नहीं है । अनन्तानुबन्धीचतुष्कका भंग स्थितिविभक्तिके समान है । किन्तु इतनी विशेषता है कि संख्या भागहानिका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है । पचेद्रिय तिर्यञ्चत्रिक में इसी प्रकार भंग है । किन्तु इतनी विशेषता है कि मिध्यात्व, सोलह कषाय और नौ नोकपायोंकी संख्यात भागवृद्धिका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है । पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्च पर्याप्त और मनुष्य पर्यातकों में मिध्यात्व, सोलह कषाय और नौ नोकपायोंकी असंख्यात भागवृद्धिका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल दो समय अथवा सत्रह समय है । असंख्यात भागहानि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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