Book Title: Kasaypahudam Part 08
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh

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Page 426
________________ गो० ५८ ] पयडिट्ठिदिवड्डिसंकमे एयजीवेण कालो ४१३ समया वा । असंखे० भागहाणि अवट्ठि ० जह० एगसमओ, उक्क० तोमुहुत्तं । संखेजभागवड्ढि-दोहाणी० जह० उक्क० एयस० | संखे० गुणवड्डी० जह० एयस०, उक्क० वे समया । सम्म० - सम्मामि० असंखे० भागहाणी ० जह० एगस०, उक्क० अंतोमु० | दोहाणी० जह० उक्क० एयस० । ९ ८८६. मणुस ० ३ मिच्छ० - बारसक० - णवणोक० पंचिं० तिरिक्खभंगो | णवरि असंखे० गुणहाणी० जह० उक्क० एयस० । बारसक० - णवणोक० अवत्त ० जह० उक्क० एस० । अनंताणु ०४ पंचि ० तिरिक्खभंगो । सम्म० सम्मामि० पंचिं० तिरि० भंगो | णवरि असंखे० गुणहाणी० जह० उक्क० एयस० । १८८७. देवाणं णारयभंगो | णवरि असंखे ० भागहाणी० जह० एयसमत्रो, उक्क० तेत्तीस सागरोवमाणि । भवणादि जाव सहस्सार त्ति एवं चैव । णवरि सगट्टिदी | आणदादि जाव णवगेवजा त्तिमिच्छ० - बारसक० - णवणोक० विहत्तिभंगो । सम्म०सम्मामि० चत्तारिखड्डि-संखे० भागहाणि अवत्त० जह० उक्क० एयसमओ | असंखे० भागहाणी ० जह० एयसमओ, उक्क० सगट्टिदी | अनंताणु ०४ विहत्तिभंगो | णवरि संखे०भागहाणी० जह० उक्क० एयसमओ | अणुद्दिस्सादि सव्वट्टा त्ति मिच्छ०-सम्म० } अवस्थित पदका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है । संख्यात भागवृद्धि और दो हानियोंका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है । संख्यातगुणवृद्धिका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल दो समय है । सम्यक्त्व और सम्यग्मिध्यात्वकी असंख्यात - भागहानिका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है । दो हानियोंका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है । ६. मनुष्यत्रिक में मिथ्यात्व बारह कषाय और नौ नोकषायों का भंग पचन्द्रिय तिर्यों के समान है । किन्तु इतनी विशेषता है कि असंख्यातगुणहानिका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है । बारह कषाय और नौ नोकपायोंके वक्तव्यपदका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है । अनन्तानुबन्धीचतुष्कका भंग पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्चों के समान है । सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वका भंग पञ्चेन्द्रिय तिर्यश्नोंके समान है । किन्तु इतनी विशेषता है कि असंख्यात - गुणहानिका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है । 8८८७ देवों में नारकियों के समान भंग है । किन्तु इतनी विशेषता है कि असंख्यातभागहानिका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल तेतीस सागर है । भवनवासियोंसे लेकर सहस्रार कल्प तकके देवोंमें इसी प्रकार भंग है । किन्तु इतनी विशेषता है कि अपनी अपनी स्थिति कहनी चाहिए | आनत से लेकर नौ ग्रैवेयक तकके देबोंमें मिध्यात्व, बारह कषाय और नौ नोकषायोंका भंग स्थितिविभक्तिके समान है । सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी चार वृद्धि, संख्यातभागहानि और अवक्तव्यपदका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है । असंख्यात भागहानिका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल अपनी अपनी स्थितिप्रमाण है । अनन्तानुबन्धचतुष्कका भंग स्थितिविभक्तिके समान है । किन्तु इतनी विशेषता है कि संख्यातभागहानिका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है । अनुदिशसे लेकर सर्वार्थसिद्धितकके देवों में Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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