Book Title: Kasaypahudam Part 08
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
[ बंधगो ६
तस्स विदियसमयसम्माइट्ठिस्स जह० वड्डी । हाणी अधट्टिदि गालयमाणयस्स । अणुद्दिसादि सव्वाति २८ पय० जह० हाणी अघट्ठिदि गालयमाण० । एवं जाव० ।
* अप्पाबहुअं ।
६८५५. जहण्णुकस्सवढि हाणि-अवड्डाणाणं पमाणविसयणिण्णयकरणद्रुमप्पाबहुअमिदाणिं कायव्वमिदि भणिदं होइ ।
* मिच्छत्त- सोलसकसाय-इत्थि- पुरिसवेद-हस्स- रदी सव्वत्थोवा उक्सस्सिया हाणी | ६ ८५६. कुदो पाणत्तादो ।
अंतोकोडाको डिपरिहीणसत्तरि- चत्तालीससागरोवमकोडा कोडि
* बड्डी अवाणं च दो वि तुल्लाणि विसेसाहियाणि ।
९ ८५७. केत्तियमेत्तो विसेसो ? अंतोकोडा कोडिमेत्तो । एत्थ कारणं पुत्र मेच
परूविदं ।
* सम्मत्त सम्मामिच्छत्ताणं सव्वत्थोवो अट्ठासंकमो ।
९ ७५८. एयणिसेयमाणत्तादो ।
* हाणिसंकमो संखेज्जगुणो ।
$ ८५९. उकस्सट्ठिदिखंडय पमाणत्तादो ।
I
वृद्धि होती है । हानि अधः स्थितिको गलानेवाले के होती है । अनुदिशसे लेकर सर्वार्थसिद्धि तक के देवों में २८ प्रकृतियोंकी जघन्य हानि अधः स्थितिको गलानेवालेके होती है । इसीप्रकार अनाहारक मार्गणा तक जानना चाहिए ।
* अल्पबहुत्वका अधिकार है ।
८५५. जघन्य और उत्कृष्ट वृद्धि, हानि और अवस्थानका प्रमाणविषयक निर्णय करने के लिए इस समय अल्पबहुत्व करना चाहिए यह उक्त कथनका तात्पर्य है
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* मिथ्यात्व, सोलह कषाय, स्त्रीवेद, पुरुषवेद, हास्य और रतिकी उत्कृष्ट हानि सबसे स्तोक है ।
$ ८५६. क्योंकि वह अन्तः कोड़ा कोड़ी हीन सत्तर और चालीस कोड़ाकोड़ी सागरप्रमाण है । * उससे वृद्धि और अवस्थान दोनों ही तुल्य होकर विशेष अधिक हैं । ९८५७. विशेषका प्रमाण कितना है ? अन्तःकोड़ाकोड़ीमात्र है । यहाँ पर कारणका कथन पहले ही कर आये हैं ।
* सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वका अवस्थानसंक्रम सबसे स्तोक है ।
९ ८५८. क्योंकि वह एक निषेकप्रमाण है ।
* उससे हानिसंक्रम असंख्यातगुणा है । ६८५६. क्योंकि वह उत्कृष्ट स्थितिकाण्डक्रप्रमाण है ।
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