Book Title: Kasaypahudam Part 08
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
View full book text
________________
४०६ जयघवलासहिदे कसायपाहुडे
[बंधगो६ हिदीदो हेट्ठा वि पलिदोवमस्स संखेजदिभागमेत्तसम्मत्त-सम्मामिच्छत्तट्ठिदीणमसंखेजभागवड्डिवियप्पा लब्भंति । ते जाणिय वत्तव्वा ।
८७३. संपहि संखेजभागवड्डीए विसयगवेसणं कस्सामो । तं जहा–मिच्छत्तधुवट्ठिदिमुक्कस्ससंखेजेण खंडिय तत्थेयखंडमेत्तेण तत्तो अब्भहियमिच्छत्तट्ठिदिसंतकम्मिएण मिच्छाइट्टिणा मिच्छत्तधुवट्ठिदिपमाणसम्मत्त-सम्मामिच्छत्तहिदिसंतकम्मेण सह वेदयसम्मत्ते पडिवण्णे पढमो संखेजभागवड्डिवियप्पो होइ । एत्तो समयुत्तरादिकमेण मिच्छत्तट्ठिदिमणंतरपरूविदपमाणादो वड्डाविय णिरुद्धसम्मत्तहिदीए सह सम्मत्तं गेण्हाविय संखेजभागवड्डिविसयो ताव परूवेयव्वो आव रूवूणधुवट्ठिदिसमन्महियमिच्छट्टिदिसंतकम्मियं पत्तो ति । एवं चेव समयुत्तरादिसम्मत्तहिदिविसेसाणं पि पुध पुध णिरंभणं काऊण पयदवड्डिविसओ समयाविरोहेण परूवेयव्वो जाव तप्पाओग्गपलिदोवमसंखेजभागपरिहीणसत्तरिसागरोवमकोडाकोडिमेत्तसम्मत्तहिदि ति । ताधे तेत्तिमेत्तेण सम्मत्त-सम्मामिच्छत्तद्विदिसंतकम्मेण मिच्छत्तुक्कस्सद्विदीए च किंचूणाए सम्मत्तं पडिवजमाणस्स तदपच्छिमवियप्पसमुप्पत्ती होइ । मिच्छत्तधुवद्विदीदो हेट्ठा वि संखेजभागवड्डिविसओ जहासंभवं विहासेयव्यो।
८७४. एत्तो संखेजगुणवड्डिविसयपरूवणा कोरदे । तं जहा-पलिदोवमस्स संखेजभागमेत्तसम्मत्तहिदिसंतकम्मियमिच्छाइट्टिणा मिच्छत्तस्स तप्पाओग्गंतोकोडाकोडिध्र वस्थितिके नीचे भी सम्यक्त्व और सम्यग्मिध्यात्वकी पल्यके संख्यातवें भागप्रमाण स्थितियोंके असंख्यातभागवृद्धिसम्बन्धी विकल्प प्राप्त होते हैं सो उन्हें जान कर कहना चाहिए।
६८७३. अब संख्यातभागवृद्धिके विषयका अनुसन्धान करते हैं। यथा-मिथ्यात्वकी ध्रवस्थितिमें उत्कृष्ट संख्यातका भाग देनेपर प्राप्त हुए एक भागसे अधिक मिथ्यात्वके स्थितिसत्कर्मवाले जीवके मिथ्यात्वकी ध्रुवस्थितिके बराबर सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वके स्थितिसत्कर्मके साथ वेदकसम्यक्त्वको प्राप्त होनेपर संख्यातभागवृद्धिका प्रथम बिकल्प होता है। आगे पहले कहे हुए प्रमाणसे मिथ्यात्वकी स्थितिको एक समय अधिक आदिके क्रमसे बढ़ाकर सम्यक्त्वकी विवक्षित स्थितिके साथ सम्यक्त्वको ग्रहण कराकर एक कम ध्रुवस्थितिसे अविक मिथ्यात्वके स्थितिसत्कर्मके प्राप्त होने तक संख्यातभागवृद्धिका विषय कहना चाहिए। तथा इसी प्रकार सम्यक्त्वके एक समय अधिक आदि स्थितिविशेषोंको पृथकपृथक विवक्षित कर प्रकृत वृद्धिका विषय समयके अविरोध पूर्वक तत्प्रायोग्य पल्या संख्यतयाँ भागकम सत्तर कोड़ाकोड़ी सागरप्रमाण सम्यक्त्वकी स्थितिके प्राप्त होनेतक कहना चाहिए। तब तत्प्रमाण सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वके स्थितिसत्कर्मके साथ मिथ्यात्वकी कुछकम उत्कृष्ट स्थितिके सद्भावमें सम्यक्त्वको प्राप्त होनेवाले जीवके संख्यातभागवृद्धिके अन्तिम विकल्पकी उत्पत्ति होती है। इसी प्रकार मिथ्यात्वकी ध्रुवस्थितिके नीचे भी संख्यातभागवृद्धिके विषयका यथासम्भव व्याख्यान करना चाहिए।
६८७४. धागे संख्यातगुणवृद्धिके विषयका व्याख्यान करते हैं। यथा-सम्यक्त्वके पल्यके संख्यातवें भागप्रमाण स्थितिसत्कर्मवाले मिथ्यादृष्टि जीवके उपशमसम्यक्त्वके ग्रहणके योग्य मिथ्यात्वके अन्तःकोड़ाकोड़ीप्रमाण स्थितिसत्कर्मके साथ उपशमसम्यक्त्वको उत्पन्न
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org