Book Title: Kasaypahudam Part 08
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh

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Page 357
________________ ३४४ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [ बंधगो ६ तिण्हं संजल० णियमा अज० संखे गुणब्भहियं । लोभसंजल० णिय० अज० असंखे गुणब्भ० । कोहसंजल० जह० द्विदिसंका० दोण्हं संजल० णियमा अज० संखे गुणब्भ० । लोभसंज० णि. अज० असंखे गुणब्भ०। माणसंज० जह. द्विदिसंका० मायासंज० णिय. अज० संखे गुणब्भ० । लोभसंज० णियमा अज० असंखेन्गुणब्भहियं । मायासंज० जह० द्विदिसंका० लोभसंज० णि० अज० असंखे०गुणब्भ० । लोहसंज० जह० हिदिसंका० सव्वपयडीणमसंकामओ। ____६९३. आदेसेण णेरइय० मिच्छ० जह० द्विदिसंका० सम्मत्तस्स सिया कम्मंसिओ सिया ण । जइ कम्मंसिओ संकामओ । जइ संकामओ, किं जह० अज० १ णियमा अज० असंखे०गुणब्भ० । सम्मामि० सिया कम्मंसिओ सिया ण। जइ कम्मंसिओ सिया संकामओ । जइ संका०, किं जह० अज० ? तं तु चउट्ठाणपदिदं । सेसं हिदिविहत्तिभंगो। सम्मत्त-सम्मामि०-अणंताणु०४ सण्णियासो वि द्विदिविहत्तिभंगेण णेयव्वो । अपच्चक्खाणकोह. जह० द्विदिसंका० सम्मत्त-सम्मामि० मिच्छत्तभंगो। सेसं द्विदिविहत्तिभंगो। एवमेकारसक० । णवणोकसायाणं द्विदिविहत्तिभंगो । णवरि सम्मत्त तीन संज्वलनोंकी नियमसे संख्यातगुणी अधिक अजघन्य स्थितिका संक्रामक होता है। तथा लोभसंज्वलनकी नियमसे असंख्यातगुणी अधिक अजघन्य स्थितिका संक्रामक होता है । क्रोधसंज्वलनकी जघन्य स्थितिका संक्रामक जीव दो संज्वलनोंकी नियमसे संख्यातगुणी अधिक अजघन्य स्थितिका संक्रामक होता है। तथा लोभसंज्वलनकी नियमसे असंख्यातगुणी अधिक अजघन्य स्थितिका संक्रामक होता है। मानसंज्वलनकी जघन्य स्थितिका संक्रामक जीव मायासंज्वलनकी नियमसे संख्यातगुणी अधिक अजघन्य स्थितिका संक्रामक होता है। तथा लोभसंज्वलनकी नियमसे असंख्यातगुणी अधिक अजघन्य स्थितिका संक्रामक होता है। मायासंज्वलनकी जघन्य स्थितिका संक्रामक जीव लोभसंज्वलनकी नियमसे असंख्यातगुणी अधिक अजघन्य स्थितिका संक्रामक होता है । लोभसंज्वलनकी जघन्य स्थितिका संक्रामक जीव सब प्रकृतियोंका असंक्रामक होता है। ६६६३. आदेशसे नारकियोंमें मिथ्यात्वकी जघन्य स्थितिका संक्रामक जीव सम्यक्त्वका कदाचित् कर्माशिक है और कदाचित् अकांशिक है। यदि कर्माशिक है तो कदाचित् संक्रामक है । यदि संक्रामक है तो क्या जघन्य स्थितिका संक्रामक है या अजघन्य स्थितिका संक्रामक है ? नियमसे असंख्यातगुणी अधिक अजघन्य स्थितिका संक्रामक है। सम्यग्मिथ्यात्वका कदाचित् कर्माशिक है और कदाचित् नहीं है । यदि कांशिक है तो कदाचित् संक्रामक है । यदि संक्रामक है तो क्या जघन्य स्थितिका संक्रामक है या अजघन्य स्थितिका संक्रामक है ? वह चतुःस्थानपतित है । शेष भङ्ग स्थितिविभक्तिके समान है। सम्यक्त्व, सम्यग्मिथ्यात्व और अनन्तानुबन्धीचतुष्कका सन्निकर्ष भी स्थितिविभक्तिके भंगके समान ले जाना चाहिए। अप्रत्याख्यानावरणक्रोधकी जघन्य स्थितिके संक्रामकके सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वका भंग मिथ्यात्वके समान है। शेष भंग स्थितिविभक्तिके समान है । इसी प्रकार ग्यारह कषायोंकी मुख्यतासे सन्निकर्ष जानना चाहिए। नौ नोकषायोंका भंग स्थितिविभक्तिके समान है। किन्तु इतनी विशेषता है कि सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वके १. ता० -श्रा०प्रत्योः सिया कम्मंसिश्रो सिया च संकामश्रो इति पाठः। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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