Book Title: Kasaypahudam Part 08
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
[बंधगो ६ पमाणादो पढमसमयसम्माइट्ठिम्मि तद्विदीणमघट्टिदिगलणेण समयूणत्तदंसणादो। तदो तत्थ णिसेयसंकमवुड्डीए वि कालपरिहाणिलक्षणो संकमस्स अप्पयरभावो चेवे त्ति । ण च एवंविहा विवक्खा सुत्ते ण दीसइ त्ति संकणिज्जं; उवसमसम्माइडिम्मिाणिसेयावेक्खाए अवट्ठियसंकममपरूविय कालपरिहाणिवसेणप्पयरसंकमपरूवयम्मि सुत्तम्मि तदुवलंभादो। तदो सम्मामिच्छत्ते पडिवजाविदे वि ण दोसो त्ति सिद्धं ।
ॐ अवट्ठिदसंकामओ केवचिरं कालादो होदि ? ६ ७५३. सुगमं ।
ॐ जहणणेयसमो, उकस्सेणंतोमुहुत्तं ।
६ ७५४. कुदो ? एयट्ठिदिबंधावट्ठाणकालस्स जहण्णुकस्सेणेयसमयमंतोमुहुत्तमेत्तपमाणोवलंभादो।
ॐ सम्मत्त-सम्मामिच्छत्ताणं भुजगार अवविद-अवत्तव्वसंकामया केवचिरं कालादो होंति ?
७५५. सुगममेदं पुच्छासुत्तं । * जहएणुकस्सेणेयसमझो।
$ ७५६. भुजगारसंकमस्स ताव उच्चदे-तप्पाअोग्गसम्मत्त-सम्मामिच्छत्तट्ठिदिसंतकम्मियमिच्छाइट्ठिणा तत्तो दुसमउत्तरादिमिच्छत्तट्ठिदिसंतकम्मिएण सम्मत्ते पडिवण्णे सम्यग्दृष्टिके उसकी स्थितियोंमें अधःस्थितिगलनाके आलम्बनसे एक समय कमपना देखा जाता है, इसलिए वहाँ निषेकसंक्रममें वृद्धि होने पर भी संक्रमका कालपरिहानिलक्षण अल्पतरपना ही है । सूत्रमें इसप्रकारकी विवक्षा नहीं दिखलाई देती ऐसी आशंका करना भी ठीक नहीं है, क्योंकि उपशम सम्यग्दृष्टिके निषेकोंकी अपेक्षा अवस्थितसंक्रमका कथन न करके कालपरिहानिके आलम्बन द्वारा अल्पतरसंक्रमका कथन करनेवाले सूत्र में उक्त विवक्षा उपलब्ध होती है, इसलिए सम्यग्मिथ्यात्वको प्राप्त कराने पर भी दोष नहीं है यह सिद्ध हुआ।
* अवस्थितसंक्रामकका कितना काल है ? ६७५३. यह सूत्र सुगम है। * जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है।
६ ७५४. क्योंकि एक समान स्थिति के बन्धका अवस्थान काल जघन्यसे एक समय और उत्कृष्टसे अन्तर्मुहूर्तप्रमाण उपलब्ध होता है।
* सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वके भुजगार, अवस्थित और अवक्तव्यपदके संक्रामकोंका कितना काल है ?
६७५५. यह पृक्षासूत्र सुगम है। * जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है ।
6 ७५६. भुजगारसंक्रमका पहिले कहते हैं-जो तत्प्रायोग्य सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वके स्थितिसत्कर्मसे युक्त है और जो उनकी स्थितिसे मिथ्यात्वकी दो समय अधिक आदि स्थितिसे युक्त है ऐसे मिथ्यादृष्टि जीवके सम्यक्त्वको प्राप्त होने पर दूसरे समयमें भुजगारसंक्रम होकर
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