Book Title: Kasaypahudam Part 08
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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३६६ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
[ बंधगो ६ तस्स जहणिया वड्डी होदि, एयहिदिमेत्तस्सेव तत्थ बुड्डिदंसणादो। उदाहरणपदसणट्ठमेदं परूविदं । तदो सव्वासु चेव द्विदीसुसमयुत्तरबंधवसेण जहणिया वड्डी अविरुद्धा परूवेयव्वा ।
® जहणिया हाणी कस्स? .६८४६. सम्मत्त-सम्मामिच्छत्तवजाणं सव्वकम्माणमिदि अणुवट्टदे । सुगममन्यत् ।
® तप्पाओग्गसमयुत्तरजहएणहिदिसंकमादो तप्पाओग्गजहएणहिदि संकामेमाणयस्स तस्स जहरिणया हाणी ?
६८४७. समयुत्तरधुवद्विदि संकामेमाणओ अधढिदिगलणेण धुवट्ठिदि संकामेदुमाढत्तो तस्स जहणिया हाणी, एयहिदिमेत्तस्सेव तत्थ हाणिदसणादो । एवं सव्वाओ द्विदीयो णिरुंभिऊण जहण्णहाणी परूवेयव्वा ।
* एयदरत्थमवट्ठाणं ।
८४८. कथं ताव वड्डीए अवट्ठाणसंभवो ? वुच्चदे-समयणुक्कस्सद्विदिसंकमादो उक्कस्सटिदिसंकमेण वड्डिदस्स अंतोमुहुत्तमवद्विदट्ठिदिबंधवसेण तत्थेवावट्ठाणे णत्थि विरोहो । एवं जहण्णहाणीए वि अवट्ठाणसंभवो दट्ठव्वो । एदाणि जहण्णवडि-हाणिअवट्ठाणाणि एयहिदिमेत्ताणि । संपहि सम्मत्त-सम्मामिच्छत्ताणं जहण्णवड्डिसामित्तपरूवणट्ठमुत्तरसुत्तं भणइक्योंकि वहाँ पर एक समयमात्र स्थितिसंक्रमकी वृद्धि देखी जाती है। उदाहरण दिखलाने के लिए यह कहा है, इसलिए सभी स्थितियोंमें एक समय अधिक बन्ध होनेसे जघन्य वृद्धि बिना विरोधके बन जाती है ऐसा कथन करना चाहिए।
* जघन्य हानि किसके होती है ? ___६८४६. यहाँ इस सूत्रमें सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वको छोड़कर शेष सब कर्मोकी इतने वाक्यकी पूर्व सूत्रसे अनुवृत्ति होती है। शेष कथन सुगम है।
* तत्प्रायोग्य एक समय अधिक जघन्य स्थितिके संक्रमके बाद तत्प्रायोग्य जघन्य स्थितिका संक्रम करनेवाले जीवके जघन्य हानि होती है।
___८४७. एक समय अधिक ध्रुवस्थितिका संक्रम करनेवाला जो जीव ध्रुवस्थितिका संक्रम करता है उसके जघन्य हानि होती है, क्योंकि वहाँ पर एक स्थितिमात्रकी हानि देखी जाती है । इस प्रकार सब स्थितियोंको विवक्षित कर जघन्य हानिका कथन करना चाहिए।
* किसी एक स्थानमें जघन्य अवस्थान होता है। ६८४८. शंका-वृद्धिके बाद अवस्थान कैसे सम्भव है ?
समाधान-कहते हैं-एक समय कम उत्कृष्ट स्थितिके संक्रमके बाद उत्कृष्ट स्थितिका संक्रम करनेसे वृद्धिको प्राप्त हुए जीवके अन्तर्मुहूर्त कालतक अवस्थित स्थितिके बन्धके कारण उसीमें अवस्थान होनेपर वृद्धिके बाद अवस्थान होनेमें विरोध नहीं है।
इसी प्रकार जघन्य हानिके बाद भी अवस्थानका सम्भव जान लेना चाहिए । ये जघन्य वृद्धि, हानि और अवस्थान एक स्थितिप्रमाण हैं। अब सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वके जघन्य वृद्धि के स्वामित्वका कथन करनेके लिए आगेका सूत्र कहते हैं
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