Book Title: Kasaypahudam Part 08
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh

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Page 395
________________ ३८२ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [ बंधगो ६ ८०१. सम्मत्त-सम्मामिच्छत्ताणं भुजगारमवत्तव्वयं वा काऊण द्विदणाणाजीवाणमेयसमयमंतरिय तदणंतरसमए पुणो वि केत्तियाणं पि तब्भावेण पादुव्भावविरोहाभावादो। * उकस्सेण चउवीसमहोरत्ते सादिरेये । ६८०२. कुदो ? एत्तिएणुकस्संतरेण विणा पयदभुजगारावत्तव्वसंकामयाणं पुणरुभवाभावादो। ॐ अप्पयरसंकामयंतरं केवचिरं कालादो होदि ? पत्थि अंतर । ८०३. अप्पयरसंकामयंतरं केवचिरं होइ ति आसंकिय णत्थि अंतरमिदि तप्पडिसेहो कीरदे । कुदो वुण तदभावो ? तिसु वि कालेसु वोच्छेदेण विणा णिरंतरमेदेसि पवाहस्स पवुत्तिदसणादो। * अवडिदसंकामयंतर केवचिरं कालादो होदि ? जहएणणेयसमओ । १८०४. सम्मत्त-सम्मामिच्छत्तहिदिसंतकम्मादो समयुत्तरमिच्छत्तहिदिसंतकम्मियाणं केत्तियाणं पि जीवाणं वेदयसम्मत्तुप्पत्तिविदियसमए विवक्खियसंकमपजाएण परिणमिय तदणंतरसमए अंतरिदाणं पुणो अण्णजीवेहि तदणंतरोवरिमसमए अवट्ठिदपञ्जायपरिणदेहि अंतरवोच्छेदे कदे तदुवलंभादो । 8 उक्कस्सेण अंगुलस्स असंखेजदिभागो। ६८०१. क्योंकि सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वके भजगार या अवक्तव्यपदको करके स्थित हुए नाना जीवोंके एक समयका अन्तर देकर तदनन्तर समयमें फिरसे कितने ही जीवोंके उन दोनों पदों रूपसे परिणत होनेमें कोई विरोध नहीं आता। * उत्कृष्ट अन्तर काल साधिक चौबीस दिन-रात है। 5 ८०२. क्योंकि इतना उत्कृष्ट अन्तर हुए बिना प्रकृत भुजगार और प्रवक्तव्यसंक्रामकोंकी फिरसे उत्पत्ति नहीं होती। * अल्पतरसंक्रामकोंका अन्तरकाल कितना है ? अन्तरकाल नहीं है । 5 ८०३. अल्पतरसंक्रामकोंका अन्तरकाल कितना है ऐसी आशंका करके अन्तरकाल नहीं है इस प्रकार उसका निषेध किया। शंका-इनके अन्तरकालका अभाव क्यों है ? समाधान—क्योंकि तीनों ही कालोंमें विच्छेदके बिना निरन्तर इनके प्रवाहकी प्रवृत्ति देखी जाती है। * अवस्थितसंक्रामकोंका अन्तरकाल कितना है ? जघन्य अन्तर एक समय है। 5 ८०४. क्योंकि सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वके स्थितिसत्कर्मसे एक समय अधिक मिथ्यात्वके स्थितिसत्कर्मवाले कितने ही जीवोंके वेदकसम्यक्त्वकी उत्पत्तिके दूसरे समयमें विवक्षित संक्रमपर्यायसे परिणम कर तदनन्तर समयमें अन्तरको प्राप्त होने पर पुनः अन्य जीवोंके तदनन्तर उपरिम समयमें अवस्थितसंक्रम पयायसे परिणत होकर अन्तरका विच्छेद करने पर उक्त अन्तरकाल उपलब्ध होता है। * उत्कृष्ट अन्तर अंगुलके असंख्यातवें भागप्रमाण है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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