Book Title: Kasaypahudam Part 08
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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गा० ५८ ] उत्तरपयडिट्ठिदिभुजगारसंकमे अप्पाबहुअं
३८५ ६८१४. जइ वि अप्पयरसंकमकालो वि अंतोमुहुत्तमेत्तो चेव तो वितकालसंचिदजीवरासिस्स पुबिल्लसंचयादो संखेज्जगुणत्तं ण विरुज्झदे, संतस्स हेट्ठा संखेज्जवारमवहिदहिदिबंधेसु पादेकमंतोमुहुत्तकालपडिबढेसु परिणमिय सई संतसमाणबंधेण सव्वेर्सि जीवाणं परिणमणदंसणादो।
8 सम्मत्त-सम्मामिच्छत्ताणं सव्वत्थोवा अवट्टिदसंकामया।
$ ८१५. कुदो ? समयुत्तरमिच्छत्तहिदिसंतकम्मेण वेदयसम्मत्तं पाडिवज्जमाणजीवाणमइदुल्लहत्तादो।
9 भुजगारसंकामया असंखेजगुणा ।
६८१६. को गुणगारो ? आवलि० असंखे भागो । दोण्हमेदेसिमेयसमयसंचिदत्तेण संते कुदो एस विसरिसभावो ति णासंकणिज्जं. तत्तो एदस्स विसयबहुत्तोवलंभादो । तं कधं ? अवढिदसंकमविसओ णिरुद्धेयट्ठिदिमेत्तो, समयुत्तरमिच्छत्तहिदिसंतकम्मादो अण्णत्थ तदभावणिण्णयादो । भुजगारसंकमो पुण दुसमयुत्तरादिहिदिवियप्पेसु संखेज्जसागरोवमपमाणावच्छिण्णेमु अप्पडिहयपसरो । तदो तेसु ठाइदूण वेदयसम्मत्तमुवसमसम्मत्तं च पडिवज्जमाणो जीवरासी असंखेज्जगुणो त्ति णिप्पडिबंधमेदं ।
६८१४. यद्यपि अल्पतरसंक्रामकोंका काल भी अन्तर्मुहूर्तप्रमाण है तो भी उतने कालमें सञ्चित हुई जीवराशि पूर्वोक्त सञ्चयसे संख्यातगुणी है इसमें कोई विरोध नहीं आता, क्योंकि प्रत्येक बार अन्तर्मुहूर्त काल तक सत्कर्मसे कम अवस्थित स्थितिबन्धरूपसे परिणमन कर एक बार सब जीवोंका सत्कर्मके समान बन्धरूप परिणाम देखा जाता है ।
* सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वके अवस्थितसंक्रामक जीव सबसे स्तोक हैं।
६८१५, क्योंकि मिथ्यात्त्रके एक समय अधिक स्थितिसत्कर्मके साथ वेदकसम्यक्त्वको प्राप्त होनेवाले जीव अतिदुर्लभ हैं।
* उनसे भुजगारसंक्रामक जीव असंख्यातगुणे हैं । ६८१६. गुणकार क्या है ? आवलिका असंख्यातवाँ भाग गुणकार है।।
शंका-उक्त प्रकृतियोंके अवस्थित और भुजगार इन दोनों पदोंका सञ्चय एक समयमें होने पर यह विशदृशता क्यों प्राप्त होती है ?
समाधान-ऐसी आशंका करना ठीक नहीं है, क्योंकि अवस्थितपदसे भुजगारपदका विषयबहुत्व उपलब्ध होता है ।
शंका-वह कैसे ?
समाधान—क्योंकि अवस्थितसंक्रमका विषय विवक्षित एक स्थितिमात्र है, क्योंकि मिथ्यात्वके एक समय अधिक स्थितिसत्कर्मसे अन्यत्र उसके अभावका निर्णय है। परन्तु भुजगारसंक्रम दो समय अधिक स्थितिविकल्पसे लेकर संख्यात सागर प्रमाण अधिक स्थितिविकल्पोंके प्राप्त होने तक अप्रतिहत प्रसारवाला है, इसलिए उन स्थितिविकल्पोंमें स्थापित कर वेदकसम्यक्त्व और उपशमसम्यक्त्वको प्राप्त होनेवाली जीवराशि असंख्यातगुणी है यह निर्विवाद है।
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