Book Title: Kasaypahudam Part 08
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh

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Page 366
________________ गा० ५८ ] उत्तरपयडिटिदिसंकमे अप्पाबहुअं ३५३ ॐ णqसयवेदजहएणद्विदिसंकमो विसेसाहित्रो। ७२७. किं कारणं ? हस्स-रईणमरइ-सोगबंधगद्धा गालिदा । णqसयवेदस्स पुण एत्तो संखेजगुणहीणो परिसित्थिवेदबंधगद्धासमासो गालिदो। तम्हा अरदि-सोगबंधगद्धाए संखेजेहि भागेहि णवंसयवेदजहण्णट्ठिदिसंकमो तत्तो विसेसाहिओ जादो । संदिट्ठीए तस्स पमाणमेदं ८४। * अरइ-सोगाणं जहएणढिदिसंकमो विसेसाहियो। ७२८. कारणमरइ-सोगाणं हस्स-रदिबंधगद्धामेत्तं गलिदं। णqसयवेदस्स पुण एत्तो विसेसाहियं इत्थि-पुरिसवेदबंधगद्धासमासमेत्तं गलिदं । तदो इत्थि-पुरिसवेदबंधगद्धासमासे हस्स-रइबंधगद्धं सोहिय सुद्धसेसमेत्तेण विसेसाहियत्तमेत्थ दट्ठव्वं । पयदजहण्णद्विदिसंकमसंदिट्ठी एसा ८५ । ॐ भय-दुगुंछाणं जहएणद्विदिसंकमो विसेसाहित्रो। ७२९. केत्तियमेत्तो एत्थतणो विसेसो ? हस्स-रइबंधगद्धामेत्तो। कुदो एवं ? धुवबंधित्तेण पडिवक्खबंधगद्धागालणेण विणा लद्धजहण्णभावत्तादो । ® बारसकसायाणं जहएणहिदिसंकमो विसेसाहिओ। * उससे नपुंसकवेदका जघन्य स्थितिसंक्रम विशेष अधिक है। ६७२७. कारण क्या है ? क्योंकि हास्य-रतिका जघन्य स्थितिसंक्रम लानेके लिए अरतिशोकका बन्धककाल गलाया गया है। परन्तु नपुंसकवेदका जघन्य स्थितिसंक्रम लानेके लिए इससे संख्यातगुणा हीन पुरुषवेद-स्त्रीवेदके बन्धककालके जोड़ रूप कालको गलाया गया है, इसलिए नपुसकवेदका जघन्य स्थितिसंक्रम हास्य-रतिके जघन्य स्थितिसंक्रमसे विशेष अधिक हो गया है जो विशेष अधिकका प्रमाण अरति-शोकके संख्यात बहुभागरूप होता है। संदृष्टिसे नपुसकवेदका जघन्य स्थितिसंक्रम ८४ है। * उससे अरति-शोकका जघन्य स्थितिसंक्रम विशेष अधिक है। ६७२८. क्योंकि अरति-शोकका जघन्य स्थितिसंक्रम लानेके लिए हास्य-रतिबन्धककालमात्र गला है । परन्तु नपुसकवेदका जघन्य स्थितिसंक्रम लानेके लिए इससे विशेष अधिक गला है, क्योंकि वह स्त्री-पुरुषवेदके बन्धककालका जो जोड़ हो तत्प्रमाण गला है, इसलिए स्त्री-पुरुषवेदके बन्धककालके जोड़मेंसे हास्य-रतिबन्धककालको घटाकर जो शेष रहे उतना विशेष अधिक यहाँ पर जानना चाहिए । इस प्रकार प्रकृत जघन्य स्थितिसंक्रमकी संदृष्टि यह ८५ है। * उससे भय-जुगुप्साका जघन्य स्थितिसंक्रम विशेष अधिक है। ६७२६. ६६। यहाँ पर विशेषका प्रमाण कितना है ? यहाँ पर विशेषका प्रमाण हास्यरतिके बन्धककालप्रमाण है । शंका-ऐसा क्यों है ? समाधान-क्योंकि भय जुगुप्सा ध्रुवबन्धिनी प्रकृतियाँ हैं, इसलिए प्रतिपक्ष बन्धककालको गलाये बिना यहाँ जघन्य स्थितिसंक्रमपना प्राप्त हो जाता है। * उससे बारह कषायोंका जघन्य स्थितिसंक्रम विशेष अधिक है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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