Book Title: Kasaypahudam Part 08
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
View full book text
________________
३५२ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
[ बंधगो ६ ॐ इत्थिवेदे जहएणद्विदिसंकमो विसेसाहियो।
। ७२५. एत्थ कारणपरूवणमिमा ताव बंधगद्धाणमप्पाबहुअविहासणा कीरदे । तं जहा- सव्वत्थोवा पुरिसवेदबंधगद्धा३ । इत्थिवेदबंधगद्धा संखेज्जगुणा९ । हस्स-रदिबंधगद्धा विसेसाहिया ११ । णqसयवेदबंधगद्धा संखेज्जगुणा २२ । अरदि-सोगबंधगद्धा विसेसाहिया २३ । एदमप्पाबहुअं साहणं काऊण पुरिसवेदजहण्णट्ठिदिसंकमादो इत्थिवेदजहण्णट्ठिदिसंकमस्स विसेसाहियत्तमेवमणुगंतव्वं । तं कथं ? पुरिसवेदस्स, इत्थि-णउसयवेदबंधगद्धासमासो संदिट्ठीए३१, एत्तियमेत्तो गालिदो । एत्तो पुण विसेसहीणो पुरिसणउंसयवेदबंधगद्धासमासो संदिट्ठी० एसो २५ । इत्थिवेदस्स गालिदो एवंविहो त्ति पुरिसवेदबंधगद्धमित्थिवेदबंधगद्धाए सोहिय सुद्धसेसमेत्तेण विसेसाहियत्तमित्थिवेदजहण्णद्विदिसंकमस्स दट्ठव्वं । संदिट्ठीए सुद्धसेसपमाणमेदं ६ । एत्थागालियपडिवक्खबंधगद्धणोकसायजहण्णहिदिसंकमसंदिट्ठी एसा ९६ । एत्तो पडिवक्खबंधगद्धागालणेण पुरिसवेदजहण्णट्ठिदिसंकमो एसो ६५। एत्तो विसेसाहिओ इत्थिवेदस्स गालिदावसेसो एसो ७१ ।
ॐ हस्स-रईणं जहएणहिदिसंकमो विसेसाहियो।
। ७२६. केत्तियमेत्तेग ? इत्थिवेदबंधगद्धासंखेजदिभागं पुरिसवेदबंधगद्धाए सोहिय सुद्धसेसमेत्तेण । संदिट्ठीए तमेदं २ । तेणाहिओ हस्स-रइजहण्णद्विदिसंकमो एसो ७३ ।
* उससे स्त्रीवेदमें जघन्य स्थितिसंक्रम विशेष अधिक है।
६७२५. यहाँपर कारणका कथन करनेके लिए बन्धककालके इस अल्पबहुत्वका खुलासा करते हैं। यथा-पुरुषवेदका बन्धककाल सबसे स्तोक है ३। उससे स्त्रीवेदका वन्धककाल संख्यातगुणा है ६ । उससे हास्य-रतिका बन्धककाल विशेष अधिक है ११ । उससे नपुंसकवेदका बन्धककाल संख्यातगुणा है २२ । उससे अरति-शोकका बन्धककाल विशेष अधिक है २३ । इस अल्पबहुत्वको साधन करके पुरुषवेदके जघन्य स्थितिसंक्रमसे स्त्रीवेदका जघन्य स्थितिसंक्रम विशेष अधिक ही जानना चाहिए।
शंका-वह कैसे?
समाधान-स्त्रीवेद और नपुंसकवेदके बन्धककालका जोड़ संदृष्टिसे ३१ है। पुरुषवेदका जघन्य स्थितिसंक्रम लानेके लिए इतना गलाया है । परन्तु इससे विशेषहीन पुरुषवेद और नपुंसकवेदके बन्धककालका जोड़ है जो संदृष्टि से यह २५ है। स्त्रीवेदका जघन्य स्थितिसक्रम लानेके लिए जो गलाया गया वह इस प्रकार है, इसलिए पुरुषवेदके बन्धककालको स्त्रीवेदके बन्धककालमेंसे घटाकर जो शेष बचे उतना विशेष अधिक स्त्रीवेदका जघन्य स्थितिसंक्रम जानना चाहिए । संदृष्टिसे घटाकर जो शेष बचा उसका प्रमाण यह ६ है। यहाँपर नहीं गलाये गये प्रतिपक्ष बन्धक कालके साथ नोकषायोंके जघन्य स्थितिसंक्रमकी सदृष्टि यह ९६ है। इसमेंसे प्रतिपक्ष बन्धककालके गलानेसे पुरुषवेदका जघन्य स्थितिसंक्रम यह ६५ प्राप्त होता है। इससे विशेष अधिक गलाकर शेष बचा स्त्रीवेदका जघन्य स्थितिसंक्रम यह ७१ है।
* उससे हास्य-रतिका जघन्य स्थितिसंक्रम विशेष अधिक है।
६७२६. कितना अधिक है ? स्त्रीवेदके बन्धककालके संख्यातवें भागको पुरुषवेदके बन्धककालमेंसे घटाकर जो शेष बचे उतना अधिक है। संदृष्टिसे वह यह २ है। उतना विशेष अधिक हास्य-रतिका जघन्य स्थितिसंक्रम यह ७३ है।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org