Book Title: Kasaypahudam Part 08
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh

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Page 370
________________ गा० ५८] उत्तरपयडिट्ठिदिसंकमे अप्पाबहुअं ३५७ ॐ यारसकसाय-णवसोकसायाणं जहएणहिदिसंकमो तुल्लोअसंखेजगुणो। $ ७३७. कुदो ? अंतोकोडाकोडीपमाणत्तादो । * मिच्छत्तस्स जहएणहिदिसंकमो विसेसाहिओ। . ७३८. जइ वि सामित्तभेदो णत्थि तो वि मिच्छत्तजहण्णविदिसंकमस्स कसायजहण्णट्ठिदिसंकमादो विसेसाहियत्तमेत्थ ण विरुद्धं, चालीस०पडिभागीयंतोकोडाकोडीदो सत्तरि०पडिभागीयंतोकोडाकोडोए तीहि सत्तभागेहि अहियत्तदंसणादो। एवं सेसपुढवीसु। णवरि सत्तमाए सव्वत्थोवो अणंताणु०४ जहण्णढिदिसंकमो। सम्म०, जह०ट्ठिदिसंक० असंखे गुणो। सम्मामि० जह०द्विदिसं० विसे० । पुरिसवेद० जहट्ठिदिसं० असंखेजगुणो । इत्थिवेद० जहट्ठिदिसं० विसे० । हस्स-रइ० जहट्ठिदिसं० विसे० । णqसयवेद० जहट्ठिदिसं० विसे० । अरदि-सोग० जहट्ठिदिसं० विसे० । उच्चारणाहिप्पाएण अरइ-सोगाणमुवरि णवूस० जह०द्विदिसं० विसेसाहिओ वत्तव्वं । तदो भय-दुगुंछ० जह०द्विदिसंक० विसे० । बारसक० जहट्ठिदिसं० विसे० । मिच्छ० जह०डिदिसं० विसे० । ६ ७३९. एत्तो सेसगईणमप्पाबहुअमुच्चारणाणुसारेण वत्तइस्सामो । तं जहातिरिक्खा० णारयभंगो। णवरि णqसयवेदस्सुवरि भय-दुगुंछ० विसे० । बारसक० विसे० । * उससे बारह कषाय और नौ नोकषायोंका जघन्य स्थितिसंक्रम परस्पर तुल्य होकर भी असंख्यातगुणा है। ६७३७. क्योंकि यह अन्तःकोटाकोटिप्रमाण है। * उससे मिथ्यात्वका जघन्य स्थितिसंक्रम विशेष अधिक है। ६७३८. यद्यपि स्वामित्वभेद नहीं है तो भी कषायोंके जघन्य स्थितिसंक्रमसे मिथ्यात्वके जघन्य स्थितिसंक्रमके यहाँपर विशेष अधिक होनेमें विरोध नहीं आता, क्योंकि चालीस कोड़ाकोड़ीके प्रतिभागरूपसे प्राप्त हुए अन्तःकोड़ाकोड़ीसे सत्तर कोड़ाकोड़ीके प्रतिभागरूपसे प्राप्त हुआ अन्तःकोड़ाकोड़ी तीन-सातभाग अधिक देखा जाता है । इसी प्रकार शेष पृथिवियोंमें जानना चाहिए । इतनी विशेषता है कि सातवीं पृथिवीमें अनन्तानुबन्धीचतुष्कका जघन्य स्थितिसंक्रम सबसे स्तोक है। उससे सम्यक्त्वका जघन्य स्थितिसंक्रम असंख्यातगुणा है। उससे सम्यग्मिथ्यात्त्रका जघन्य स्थितिसंक्रम विशेष अधिक है। उससे पुरुषवेदका जघन्य स्थितिसंक्रम असंख्यातगुणा है। उससे स्त्रीवेदका जघन्य स्थितिसंक्रम विशेष अधिक है। उससे हास्य-रतिका जघन्य स्थितिसंक्रम विशेष अधिक है । उससे नपुसकवेदका जघन्य स्थितिसंक्रम विशेष अधिक है। उससे अति-शोकका जघन्य स्थितिसंक्रम विशेष अधिक है। उच्चारणाके अभिप्रायसे अरति-शोकके ऊपर नपुसकवेदका जघन्य स्थितिसंक्रम विशेष अधिक है ऐसा कहना चाहिए। उससे भय-जुगुप्साका जघन्य स्थितिसंक्रम विशेष अधिक है। उससे बारह कषायोंका जघन्य स्थितिसंक्रम विशेष अधिक है। उससे मिथ्यात्वका जघन्य स्थितिसंक्रम विशेष अधिक है। ६७३६. आगे शेष गतियोंके अल्पबहुत्वको उच्चारणाके अनुसार बतलाते हैं। यथातिर्यञ्चोंका भङ्ग नारकियोंके समान है। इतनी विशेषता है कि नपुंसकवेदके ऊपर भय-जुगुप्साका जघन्य स्थितिसंक्रम विशेष अधिक है। उससे बारह कषायोंका जघन्य स्थितिसंक्रम विशेष अधिक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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